नज़रिया-इंदु

"अरे  क्या लगती है यार !"एक ने कहा..। " हाँ यार एकदम मस्त...!"दूसरे ने हामी भरी...।तो तीसरे ने कहा कि... यार... एकदम माल है माल, टॉप क्लास वाली आइटम !"जी तो चाहता है देखता ही रहूँ सबने एकसाथ कहा !लगभग माह दो माह से मुहल्ले के लड़कों का जमावड़ा चाय वाली दुकान के पास जो गली के नुक्कड़ पर है, लग जाता है और शुरू हो जाता है उनका जुमला जो कि हर जगह क़रीब- क़रीब देखने को मिल जाता है, जहाँ भी कोई आकर्षक छवि देखते हैं तो उनका छुपा हुआ रुस्तम बाहर आ जाता है। केवल असभ्यता के लिए। उस भद्र महिला को देखते ही ये आजकल उनके जाने और आने के समय में खड़े रहते हैं और आपस में बातें जुमले बाजी कसने लगते हैं।"कौन है ये कहाँ से आई है पहले तो नहीं देखा कभी... कुछ महीनों से ये सामने वाली भुतही हवेली में रहती है, जिसमें कोई रहना नहीं चाहता। सालों से बंद पड़ी है.! "एक ने कहा राय साहब जब तक थे आते थे इस हवेली में, अपनी माँ से मिलने। उनको गुज़रे सालों हो गए। उसके बाद सबने सुना ये हवेली बिक गई बाकी किसी को रहते या खरीदते नहीं देखा। " अचानक ये कौन आ गई कहीं कोई  चुड़ैल तो नहीं...? "हा हा हा हा हा जितने भी मनचले लड़के थे सब के सब ठहाके लगाकर हँसने लगे...। चल यार मुझे कॉलेज जाना है, अरे यार मुझे भी ऑफ़िस जाना है, हाँ चल शाम को मिलते हैं ..कहाँ...? एक ने मुस्कराकर कहा तो दूसरे ने बेसुरे सुर में" यही यहाँ वो आती जाती रहती है...! "फ़िर सबका ठहाका गूंज गया वातारण में । एक - एक करके सारे  चले गए...।ऐसा नहीं था कि सिरिशा को उनकी बातें सुनाई नहीं दे रही थी, छोटी उम्र से ही पिताजी के साथ विदेश चली गई, दादी को देखने को वो भी मचलती किन्तु राय साहब किसी को ला नहीं पाते, माता जी जाना नहीं चाहती उनके साथ ,अब... पिता और पति की मृत्यु के बाद वो बड़े भाई से अनुमति लेकर यहाँ अर्थात भारत आ गई और एक कम्पनी में नौकरी के साथ - साथ गाँव की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए उन्हें ट्रेनिंग देने लगी।
सुबह तड़के निकलती और देर शाम तक आती। कुछ को ये जानकारी मिल गई कि ये राय साहब की विधवा बेटी है... बस मिल गया मसाला" अरे जिसका पति नहीं होता ऐसे रहता है?" बन ठन के, ये कुँआरी लड़की लगती है।" जब ये बात उन मनचले लड़को को पता चली तो और आगे बढ़ गएं।अरे ये देखो कैसे बन - ठन के जा रही है..! देखो कैसे ठहाके लगा रही है..!इसने तो हद कर दिया है, देखो ना कान में कितने पहन रखे हैं, तीन - तीन, झूमके देखो इसके, इसके कपड़े इसके हाव - भाव, ज़रा भी लग रहा है कि इसका पति नहीं है...! 
बेशरम है एकदम...इसके जैसी औरत ऐसे रहती है क्या..? शर्म है इसे..? ग़ैर मर्द के साथ आ रही है, हद  हो गई,,,।
अरे उदास क्यों रहती है बेचारी क्या हुआ..ये किसी के  साथ साथ भी हो सकता है, इसी के साथ थोड़े ही है, .!  ऐसे कपड़े क्यों पहनती है ? जब देखो रोनी सूरत बनाए रहती है...Iइसी का पति तो नहीं मरा दुनिया में,यही तो अकेली विधवा नहीं है...!हँसो तो दुख- रोवो तो दुख क्या उसे जीने का हक़ नहीं...?पुरुष को तो कभी कोई नाम नहीं दिया जाता, कोई कुछ नहीं कहता..? तो औरत को क्यों...? जब किसी औरत का पति गुज़र जाता है तो ना जाने कितने जुमले कितनी उपमाएं दी जाती हैं उसे, क्यों क्या इसमे उसका दोष है... क्या वो चाहती है,,? कि वो... विधवा हो जाए फिर उसे इसकी सजा क्यों.? कभी चाहेगी की समाज उसे ऐसे उपमान से सुशोभित करे...?मानो इनके चरित्र का प्रमाणपत्र इन्हीं के हाथमें है, यही देंगे। सिरशा   थी  भी नाम के अनुरूप बिल्कुल फूल सी...! जैसे ही सिरशा की गाड़ी गेट से निकली सबकी आँखें उसकी कार पर टिक गई -" वो आ रही है," देख...
" ये क्या काम करती है जो दिनभर गायब रहती है, देर से घर आती है ? " किसी ने फुसफुसा कर कहा।"अरे कोई है नहीं आगे पीछे पैसे की कमी है नहीं मस्ती करने आई है , कर रही है! " लड़कों की भीड़ में से किसी ने कहा !"आज तो मैं पता लगा के रहूँगा बहुत हो गया ये मैडम करती क्या हैं..?"तीसरे जिसके पास बाईक थी बोला!" अरे इसके साथ तो कुछ लोग भी आते हैं मैंने देखा है..!" उन्हीं में से किसी ने कहा ." चुप, चुप आ रही है "एक ने कहा तो" मैं डरता हूं क्या, आज छोड़ूंगा नहीं.. "बाईक. वाले ने कहा जैसे ही कार बग़ल से निकली उसने अपनी मोटरसाइकिल इतना जोर से घुमाया की उसकी मोटरसाइकिल घूमकर ब्रेकर से टकराई और सिरशा की कार के आगे वो लड़का और उसकी गाड़ी दोनों ही औंधे मुँह गिरे, गनीमत थी कि
वो फोन से किसी से बात कर रही थी इसलिये उसके कार में रफ़्तार नहीं थी, झट से गाड़ी रोक बाहर निकली "अरे बेटा चोट तो नहीं आई" उसके मुँह से निकला, वो तो बेहोश सा हो रहा था लड़के के सारे दोस्त भाग गए, एक जो थोड़ा शरीफ था खड़ा था सिरिशा ने उसे आवाज़ दी " भाई आप थोड़ी मदद कीजिए.!" फिर दोनों मिलके उसे डॉक्टर के पास ले गए। वो तब-तक वहीं रही जब-तक डॉक्टर ने ये नहीं कहा कि.." खतरे की कोई बात नहीं है दीदी. आप ले जाइए...!" अरे ये तो वहीं आदमी है जिसके साथ ये मैडम एक्सर देर से आती हैं, मतलब ये इनका भाई है मन में सोच रहा था, मैं क्या क्या सोचता रहा..कितना गलत हूँ मैं! 
"कैसे प्रेम से मेरे सिर को अपनी गोद लेकर सहला रही है, समझा रही है " बेटा इतनी तेज़ गाड़ी क्यों चलाते हो...? देखो तो कितनी चोट आ गई.!इतना प्रेम से तो मेरी माँ ने भी नहीं बोला होगा कभी कितनी अच्छी है... ये! किसी देव कन्या जैसी, जी चाहता है इसकी हर बात मानता जाऊँ..!" उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े..धिक्कार है, मुझ जैसे लड़कों पर जो इतनी  गंदी मानसिकता बना लेते हैं, हम सामने वाले को अपने  नज़रिए से देखते हैं...!" कभी सामने वाले के नजरिए से नहीं...! वो लकड़ा ठीक होके घर चला गया तो अपने सारे दोस्तों के साथ मिलकर उसी हवेली में रोज़गार के साथ-साथ आस - पास के बच्चों को शिक्षा भी देने लगा ! नज़रिया बदला तो नज़ारा भी बदल गया...!



इंदु उपाध्याय



 


 


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