रक्षा बंधन-किरण

कहानी

माधवी आज बेहद प्रसन्न है , कल से ही रक्षाबंधन को लेकर उत्साहित है । तीन साल बाद नितिन जो आ रहा है। उसने नितिन के पसंदीदा पकवान भी तैयार कर रखे हैं । दरवाजे पर टकटकी लगाए वह न जाने कब वर्तमान से अतीत में जा पहुंचती है ... माँ,  ये रक्षाबंधन क्या होता  है? बड़ी मासूमियत से उसने अपनी माँ से उस दिन सवाल किया था । तब माँ ने उसे रक्षाबंधन से संबंधित समस्त कथाएं सुना डाली थी । उस दिन उसे पता चला कि भाई का जीवन में क्या महत्व होता है ? उसका अपना कोई भाई नहीं था केवल तीन बहनें ही थी। फिर एक दिन नितिन का परिवार उनके पड़ोस में रहने के लिए आया । नितिन किसी से अधिक बात नहीं करता था , उसे खेलने से अधिक किताबें पढ़ना पसंद था । एक दिन शाम को जब वह पार्क में झूला झूल रही थी , तो अधिक घिसने की वजह से झूले की जंजीर टूट गई । इससे पहले माधवी को इस बात का पता चलता , नितिन ने झट से झूले को थाम लिया । उस दिन बहुत बड़ा हादसा होने से बच गया ।उस दिन वो कितना सहम गई थी ! 
अगले दिन उसने नितिन से पूछ ही लिया था , " क्या मेरे भाई बनोगे ? भाई ,भला वो क्यों ?( नितिन ने आश्चर्यचकित होकर कहा था )। तुमने मुझे गिरने से बचाया था न ,इसलिए। माँ कहती हैं कि रक्षा करने वाला भाई होता है ,तो बताओ बनोगे मेरे भाई ?
नितिन जो उम्र में उससे दो तीन वर्ष बड़ा था और समझदार भी , उसकी मासूमित को देख कर  पहले तो मुस्कुराया और फिर कहा कि ठीक है , आज से मैं तुम्हारा भाई हूँ। यह सब सोचते - सोचते आज भी उसके चेहरे पर वो ही प्रसन्नता झलक रही थी जो उस दिन उसके चेहरे पर थी । आज इस बात को बीस साल बीत चुके हैं और इन बीस सालों में उसने भाई का फ़र्ज़ निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिताजी के स्वर्गवासी होने के पश्चात हर परिस्थिति में हमारे साथ खड़ा रहा । आज के जमाने में भला कौन किसके लिए इतना करता है ? " माँ ,मामू कब तक आएंगे ? " अपनी नन्ही बिटिया की आवाज सुनकर वह अतीत से वर्तमान में आ गई थी।   वैसे माँ , रूस यहाँ से बहुत दूर है क्या ? हाँ , बहुत दूर है ।(उसने बेटी को समझाते हुए कहा)
माधवी के विवाह के कुछ माह पश्चात ही वह नौकरी के सिलसिले में विदेश जाकर बस गया था ।गत वर्ष उसने अपने माता - पिता को भी वहीं पर बुला लिया था। तीन साल से वह डाक द्वारा उसे राखी भिजवाती रही । इस बार उसने स्वयं कहा कि राखी मत भेजना , मैं आ रहा हूँ । सुनते ही खुशी के मारे उसके पांव जमीं पर टिक ही नही रहै थे । जैसे - जैसे समय व्यतीत हो रहा था , एक भय की आशंका उसे घेर रही थी । उसे फोन कर रही थी किन्तु बात नहीं हो पा रही थी । शाम होने तक उसने उम्मीद छोड़ दी थी कि किसी कारण आना नहीं हो पाया होगा । उदास मन से वह गृह कार्यों में व्यस्त हो गई।
कुछ समय पश्चात दरवाजे की घंटी बजने पर एक उम्मीद की किरण उसके मन में जागी ....काश ! .. नितिन ही हो।  दरवाजे पर उसे खड़ा देख वह दिन भर की प्रतीक्षा को मानो भूल चुकी थी । माफ़ करना माधवी , आने में जरा देर हो गई । तकनीकी खराबी के कारण फलाईट को बीच में ही रोक देना पड़ा ।देखो ! मैं अपने वायदे के अनुसार हाजिर हूँ। लो बाँध दो राखी । अरे ! पहले हाथ मुंह तो धो लो। अभी तक वैसे ही हो , बिल्कुल भी नहीं बदले । वहीं उतावलापन ... (माधवी ने मुस्कुराते हुए कहा) ।
माधवी की बेटी शर्माते हुए उसके पल्लू की ओट से नितिन को देख रही थी। मामू के पास नहीं आओगी ... फोन पर तो बड़ी - बड़ी बातें करती थी। मेरे लिए ये लाना ,वो लाना ...देखो तो तुम्हारे लिए क्या - क्या लाया हूँ। कुछ ही क्षणों में घर का माहौल उल्लासमय हो गया था।  माधवी मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद कर रही थी कि उसे नितिन जैसा भाई मिला । 
             
किरण बाला ,चंडीगढ़



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