रिश्तों का मूल्यांकन उचित नही-निधि परमार

आजकल सोशलमीडिया पर अनमोल वचन बहुत आ रहे है जिनमें प्रायः मुश्किल वक्त में जो साथ दे वही अपना बाकि सब कोई नही। यह सब सुबह से शाम तक बताया जाता है । एक प्रकार से रिश्ते और उनको मानने वालों के मन में बहुत धीमी गति से जहर डाल कर आपसी प्रेम को खत्म करने का काम किया जा रहा है । यह कैसे अनमोल वचन है और इन्हें कौन लिख रहा है ? हम क्यों इन सबको पढ़ कर फारवर्ड कर है । संभवतः कही हम इन अनमोल वचनों के बहाने अपने रिश्तों की कडवाहट को तो एक दूसरे को बताना नहीं चाहते है । किसी भी रिश्ते के मूल्यांकन की आवश्यकता ही क्यों है ? यह तो हमारी परंपरा नही है। हम भगवान राम को पूजते है तो उनके चरित्र का अनुकरण भी हमको करना चाहिए विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में वह अपना कर्त्तव्य करते है कही किसी का मूल्यांकन नही करते राजतिलक होने वाला है लेकिन वनवास हो जाता है सहजता और उत्साहित होकर स्वीकार्य कर लेते है ऐसी विषम परिस्थिति में अनेक संभावनाएँ थी उनके पास रिश्तों के मूल्यांकन की , परन्तु वह इसकी आवश्यकता ही नही समझते और जो थोड़ा बहुत कैकयी के विरूद्ध बोला जाता है उसे भी कैकयी के राम के प्रति बाल्यावस्था से उस समय तक के प्रेम को याद दिलाकर माता कैकयी प्रति सम्मान व्यक्त करते है। भरत ,लक्ष्मण, शत्रुघ्न के चरित्र को इन अनमोल वचन में क्यों नही बताया जाता, हमेशा उम्मीद की जाती है कि भाई भरत जैसा होना चाहिए या लक्ष्मण जैसा पर इन अनमोल वचन में यह क्यों नही कहाँ जाता कि हम स्वयं अपने परिवार के लिये राम बनने का प्रयास करेंगे या कृष्ण के सामान अपने समाज के उत्थान में योगदान करने की कोशिश करेंगे। यदि यह भाव या विचार मन में होगा तो प्रेम बढेगा क्योंकि तब कर्त्तव्य की याद स्वयं को दिलानी है, स्वयं के कर्तव्य का मूल्यांकन करना है। इसकी बजाय हम हमेशा दूसरों को ही याद दिलाने में लगे है कि 
ऐसा होना चाहिए दोस्त को ऐसा होना चाहिए । रिश्तों को हमेशा तौलते रहेंगे तो न कभी स्वयं खुश रहेगे और ना ही किसी और को रहने देगे , यह मानना ही पड़ेगा कि मुश्किल वक्त में प्रत्येक रिश्ते आपकी मदद नही कर सकते ,एक या दो ही रिश्ते या मित्र ही मानसिक या आर्थिक सहायता के लिए आगे आयेंगे , समय एवं परिस्थिति सबकी अलग होती है और फिर सबका समस्याओं को देखने ,जानने का नजरिया भी अलग होता है , इसलिए इस प्रकार के अनमोल वचन जो रिश्तों में कड़वाहट पैदा करने का काम करे उनसे दूर रहना ही हमारी भारतीय संस्कृति परम्पराओं के हित में है। रिश्ते है ,विद्यालीन परीक्षाएं नही कि इस प्रश्न का यह उत्तर दिया तो उत्तीर्ण , नही तो अनुत्तीर्ण। 


निधि परमार
रिवियरा टाउन 
भोपाल


 



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