सावन की फुहार
ओ सावन तू बरस जा झूम कर जरा
फुहारें चूमलें फिर आज धरती को जरा
चहकती बुलबुलों का शोर पेड़ों पर कहीं
पपीहे की पीहू पीहू से डोलता है मन मेरा
जाने कब से प्यास के हैं पुकारे सब
काले-काले मेघ तुम ना तरसाओ अब
खुल के बरसो भीग लूं मैं भी जरा
प्यास भी बुझ जाए धरती की जरा।
देखकर घनघोर काली ये घटा
लौट ना जाए कहीं प्रियतम मेरा
बरसना इतना कि रह जाए यहां वो
जा न पाए परदेस प्रियतम फिर मेरा ।
नीता चतुर्वेदी
विदिशा मध्य प्रदेश
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