सावन नहीं सुहाता-ज्‍योति

अब ये सावन नहीं सुहाता है
अब तो बादल भी दिल जलाता है
जब भी बरसात कोई होती है
मुझको बस याद तू ही आता है।



बून्द बारिश की वो नवेली थी
जिसने रोका तेरी हथेली थी
पूछते थे बताओ क्या है ये
कितनी मासूम सी पहेली थी


बाद बारिश के घर बनाया था
कैसे खुशियों से फिर सजाया था
तुमने घोली थी प्रेम की खुश्बू
लेप चन्दन का जो लगाया था


एक छाता पुराना था अपना
फिर भी मौसम सुहाना था अपना
एक कश्ती बनाई थी हमनें
यार वो ही जमाना था अपना


पावँ टिकते नही धरा पर थे
ख्वाब आकाश के बराबर थे
तुमसे ही थे उजाले मेरे तो
मेरे तो बस तुम्हीं दिवाकर थे


आज भी तुम ही मेरी बातों में
तेरे अहसास मेरे हाथों में
तुमसे हर एक दिन मेरा होता
आज भी तुम ही मेरी रातों में


तुम भी मुझको कभी पुकारो ना
आके मुझको कभी संवारो ना
कौनसी राह में भटके हो तुम
वक्त  कुछब संग में गुजारो ना
 --ज्योति शर्मा


 



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