पंडित जी, जरा सही से सामान लिखवा दीजिएगा। पिताजी के श्राद्ध में कोई कमी न रह जाए लोगों को भी तो पता चलना चाहिए कि कितनी शानौ-शौकत से हमने ये सब किया है| (सिद्धार्थ ने पंडित जी को हिदायत देते हुए कहा)क्या बात कर रहे हो जमान, पहली बार थोड़े ही कर रहे हैं ये काम ....पूजा में कोई कमी न होगी।चारू, तूने पूरे मौहल्ले वालों को खबर कर दी है न कल पिताजी का श्राद्ध है...एक बार सभी रिश्तेदारों को भी दोबारा से फोन कर देना। (अपनी पत्नी को समझाते हुए सिद्धार्थ ने कहा)यह सब सुनकर सुजाता जो कि सिद्धार्थ की माताजी हैं, उनकी आँखे अनायास ही भर आईं।अतीत की यादें उनके समक्ष मानो सजीव हो उठीं।आ गए आप, ये मिठाई का डिब्बा किसलिए !सुजाता, आज मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है.... ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो मैं आसमान में उड़ रहा हूँ।अपने सिद्धार्थ की सरकारी नौकरी लग गई है, मेरा तो जीवन ही सफल हो गया।अब तो कोई अच्छी सी लड़की देख कर हाथ पीले कर देते हैं। (सुजाता ने चहकते हुए कहा)कितनी धूम-धाम से विवाह किया था। बेटे की पढ़ाई में ही काफी धन खर्च हो चुका था, रहा-सहा अब शादी में लग चुका था।देखो जी, पिताजी की देखभाल मुझसे नहीं होती... मैं भी कहाँ तक करुँ, दो छोटे बच्चे हैं उन्हें सँभालूं या फिर इन्हें... माताजी तो वैसे ही दमे की मरीज हैं उस पर पिताजी को लकवा मार गया है। पहले कम से कम बच्चों को तो सँभाल लेते थे, घर के छोटे -बड़े काम भी कर लेते थे... अब तो बस एक ही जगह पड़े रहते हैं। वहाँ भी इन्हें चैन नहीं है, थोड़ी -थोड़ी देर बाद बस बहू ये कर दे, वो कर दे... तंग आ गई हूँ ऐसी जिंदगी से। (चारू ने मन की भड़ास निकालते हुए कहा)सिद्धार्थ ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी थी इलाज में, परंतु न तो कोई दवा ही काम कर रही थी और न ही कोई मालिश। डाक्टर से लेकर वैद्य हकीम सब कर चुका था|
अपने विवाह का कर्ज उतारा ही था कि अब बुजुर्गों की दवा दारू का खर्च ...अब सरकारी नौकरी में भला बचता भी क्या है ?आज उनको गए एक बरस हो चला है, पहले उनको लेकर चिक-चिक होती थी अब मेरी वजह से.... अब इस बुढा़पे और बीमारी को लेकर भी कहाँ जाऊं ? यह सब सोचते-सोचते सुजाता की आँखों से अविरल अश्रु धारा बह निकली।माँ, अगर तुम्हारी भी कोई इच्छा हो तो बता देना, कल को मत कहना की कोई कमी कर दी (सिद्घार्थ की आवाज सुनकर उसने जल्दी से अपने आँसू पोंछ लिए)बेटा, इतना सब कुछ करने की जरूरत क्या है, पाँच पंडितों को भोजन कराकर दक्षिणा दे देनी थी। अब इसके लिये धन कहाँ से आएगा? पहले ही सिर पर कर्ज़ है... कैसे होगा सब?हो जाएगा माँ, अब समाज में रहते हैं, बिरादरी वाले क्या कहेंगे ? जग हँसाई थोड़े ही करवानी है।
घर में बच्चों की फिकर किसी को नहीं है... जो चले गए उन पर अब भी धन बर्बाद हो रहा है, अपनी गुदड़ी देख कर ही पैर पसारने चाहिए न ...आज पिताजी के श्राद्ध में तो कल माँ के। बाकी तो घर में कोई दिखता ही नहीं है।(चारू ने पति की बात को काटते हुए कहा )माँ चुपचाप अपने कमरे में चली गई और कुछ देर बाद अपना मंगल सूत्र हाथ में लिये वापस आई और बेटे के हाथ में थमाते हुए कहा, "अब मेरे पास इसके अलावा कुछ नहीं बचा और फिर ये मेरे किस काम का।"यह कहते-कहते वो वहीं पर अचेत होकर गिर पडी़ं।अब सुजाता भी चल बसी थी, उसके चेहरे पर एक संतोष का भाव था मानो कह रही हो एक ही बार के खर्च में दोनों का श्राद्ध निपट जाएगा।
.----किरण बाला
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