उम्मीद-सरस्‍वती

सूरज ने स्कूल से आते ही मां से खाना मांगा लेकिन घर में खाने को कुछ नहीं था। मां ने उसे शाम को जल्दी खाना बना देने की बात कह कर टाल दिया वह मां की मजबूरी जानता था पिता शराबी थे तो मां ही  लोगों का चौका बर्तन करके घर चला रही थी। सूरज ने  चुपचाप पानी पिया और दोस्तों के साथ खेलने के लिए चला गया। उसने अपने दोस्त से कहा कि मैं कुछ पैसे कमा कर मां की मदद करना चाहता हूं,तो दोस्त ने उसे दुकान पर काम करने की सलाह दी जहाँ वह सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक  काम करके वह रोज पचास रूपये कमा सकता था। अगले दिन सुबह सूरज दस बजे स्कूल के लिए निकला लेकिन वह स्कूल ना जाकर काम करने  दुकान पर चला गया और शाम तक पचास रूपये की उम्मीद में जी लगाकर काम करता रहा और सपने बुनता रहा। शाम को स्कूल की छुट्टी का समय होते ही सूरज घर के लिए निकला तो मालिक ने उसे बच्चा समझकर बीस रूपये ही दिए। बीस रूपये  देखकर सूरज की आंखों में आंसू आ गये क्योंकि  इतने पैसों में सूरज अपनी मां के लिए चूड़ी, चीनी -चायपत्ती और आटा  नही ले जा सकता था। उसने मालिक से पचास रूपये देने को कहा। मालिक ने उसे झिड़कते हुए कहा-" ज्यादा पैसे चाहिए तो पढ़ लिखकर कलेक्टर बन जा।" यह सुनते ही सूरज की आंखों में चमक आ गई मानो सुनहरे भविष्य की उम्मीद की किरण दिखाई दे गयी हो। वह बीस रूपये के साथ ही  पढ़ लिख कर कलेक्टर बनने की उम्मीद लेकर चुपचाप घर आ गया।  उसने मां को बीस रुपए दिए तथा सारी बात बताई।माँ  ने डाँटा मेरे होते हुए तुझे काम करने जाने की क्या जरूरत थी। तुझे बस पढ़ना है । पर मन ही मन वहसखुश थी क्योंकि उसमें भी बेटे को कलेक्टर बनाने की उम्मीद जाग गई थी। सूरज ने भी मां की उम्मीद पर खरा उतरने के लिए  रोज स्कूल जाने व मन लगाकर पढ़ने का प्रण कर लिया वह  तुरंत बस्ता लेकर पढ़ने बैठ गया। 


 


सरस्वती उनिषाल
 अध्यापिका


,विकास नगर देहरादून,उत्तराखंड। फोटो पर क्लिक करके साहित्‍य सरोज चैनल को सस्‍क्राइब करें



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