वतन-किरण बाला


वतन मेरे का आज ये क्या हाल हुआ है
अपनों के ही हाथों ये बेहाल हुआ है


दोगलेपन की यहाँ ना कोई कमी हैं
नोटों की ही जपते सदा माला सभी हैं
डुगडुगिया बजाते मदारी यहाँ - वहाँ हैं
खेल में मगन प्रत्येक इंसान हुआ है
 
वतन मेरे का आज ये क्या हाल हुआ है
अपनों के ही हाथों ये बेहाल हुआ है


भ्रष्टाचार तंत्र की जहाँ नींव घनी है
बातें रोजगार की पर बेकार सभी हैं
जीना कठिन मरना यहाँ आसान हुआ है
संवेदनहीन आज का इंसान हुआ है


वतन मेरे का आज ये क्या हाल हुआ है
अपनों के ही हाथों ये बेहाल हुआ है


खींचतान व  लूटपाट यहाँ आगजनी है
प्रपंचों में छिपी कुटिल जहाँ राजनीति है
तमाशबीनों का सारा आवाम हुआ है
अखंड था जो खंड - खंड बदनाम हुआ है


वतन मेरे का आज ये क्या हाल हुआ है
अपनों के ही हाथों ये बेहाल हुआ है 


किरण बाला , चंडीगढ़


 



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