तरूणावस्था की अंगड़ाइयां ,आंखों में गहराते सपने,महत्वाकांक्षाओं की फिसलती डोर को किसी तरह लरजते हाथों में थामे मैं ज़िन्दगी के साथ बढ़ती चली जा रही थी कि अचानक कोई ब्रेक सा लग गया। मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के साथ ही एक स्कूल में जॉब भी कर रही थी।आइ ए एस का फॉर्म जमा करके लौटी ही थी स्कूल, कि आया जी ने बताया कि हमसे मिलने कोई साहब आए हैं। मैं उनसे ऐसे मिली जैसे वो मेरे परिचित हों।
यहां तक कि उनके द्वारा दिए गए प्रश्नों के उत्तर भी मैंने पूरे जोश से दिए साथ ही ये भी स्पष्ट कर दिया कि आजकल मेरे घर में भी शादी जैसी चर्चा चल रही है जिसमें मेरा ज़रा भी इंटरेस्ट नहीं है । खैर जो होना होता है होकर है रहता है।रविवार की वो हसीन मतवाली शाम जी हां रिमझिम फुहारों की लड़ी लगी हुई थी ,सावन अपने पूरे ज़ोर पर था । मैं भी मदमस्त सी छत पर बारिश में भीगते हुए बारिश का मज़ा ले ही रही थी कि पापा मम्मी बोले कि तैयार हो जाओ हम लोग कहीं चल रहे हैैं ।वो हसीन शाम आज भी मुझे मदहोश कर देती है जब मुझे याद आती है,जैसे ही हम गंतव्य पर पहुंचे के देखा अरे ये तो वही हैं जो उस दिन हमसे मिलकर गए थे।अपने घरवालों के साथ आए हुए थे बहुत ही खुशनुमा माहौल में हमारी इंगेजमेंट हो गई।
सबकी शुभकामनाओं से अभिभूत दिल अभी सम्हला भी नहीं था और ये अपनी बाइक लेकर आ गए मुझे बैठने का इशारा किया और मंत्रमुग्ध सी मैं ऐसा लगा जैसे मैं आसमान में उड़ रही हूं।बारिश की फुहार और आसमान को बाहों में समेट लेने की तमन्ना दिल में मचलने लगी।
वो गहराती शाम ,उनकी मदहोश निगाहें ,किसी पुरुष का प्रथम स्पर्श मुझे आह्लादित कर रहा था।ऐसा लग रहा था कोई मेरे खवावों की डोर थामे मेरे साथ-साथ चल रहा है और मैं तमाम सपने संजोए इनकी जीवनसंगिनी बन गई। वक़्त कभी नहीं रुकता । समयानुसार दो बेटों को अपने संसार में पाकर मैं उनमें ही मग्न हो गई।आज दोनों बड़े हो गए और पति अपने कार्य में और व्यस्त होते गए।
आज जिंदगी के इस मोड़ पर खड़ी अगर मैं कोई दस्तक दूं तो क्या बंद दरवाज़े फिर खुलेंगे।क्या मेरी महत्वाकांक्षा आज भी उतनी ही तीव्र है?नहीं२ विचारों के इस झंझावत में फंसी मैं ,आज फ़िर कोशिश कर रही हूं कि अपनी उस ज़िन्दगी को दोहरा लूं जो बहुत पीछे छूट गई थी।पर बंद मुट्ठी की रेत की तरह वो वक़्त भी हाथों से फिसल सा गया था।
रेनू अग्रवाल ,आशियाना जल वायु विहार लखनऊ।
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