बेला कहाँ कि तैयारी हो रही है ?"बेला के जेठ की गरजदार आवाज़ उसके कानों में गरम तेल की तरह पड़ी तो दोनों कान लाल हो गए।आँखें भी भर आईं किन्तु कुछ बोल नहीं पाई।
बेला....! मैं तुमसे ही पूछ रहा हूँ..! कहाँ जा रही हो..?नहीं जाना है, तुम्हें कहीं भी ,ख़बरदार जो घर से बाहर क़दम रखी।" इतनी गरजदार आवाज़ ने उसे भीतर तक कंपा दिया था। वो भनभनाते कमरे से बाहर निकल गए किन्तु वो बोल न सकी। बाहर से आवाज़ें आ रही थी आवारा हो गई है चुप्पी तो ऐसी साधती है कैसे कोई गाय हो।
"आपने ही मन बढ़ाया है, आप रोकिये मैं कहता हूँ ये ग़लत हो रहा है " जेठ का बेटा बोला मेरा बस चले तो मैं हाँथ पैर तोड़ दूँ," इतनी बेहया औरत लाज शरम कुछ नही है इसे,अरे खाना पानी बंद कीजिए देखिये सीधी हो जाएगी"देवर बोला " हाँ हाँ एकदम ठीक चाचाजी !"जेठ का बेटा फ़िर गरज कर बोला...
शाम हो गई थी बेला रसोई में चली गई बोली कुछ नहीं किन्तु उसके मन के गुबार उसके अधिकार में नही थे इसलिये प्याज के बहाने बाहर आने को आतुर हो गयें।
वो रोक भी न सकी बहने लगे ,वो सोचने लगी क्या किया है उसने पढ़ना ही तो चाहती है।बड़ी मुश्किल से ऐसे स्कूल में नौकरी मिली है। वो वहाँ पढ़ाती है जहाँ पढ़ाना अपने आप में सौभाग्य की बात है। स्कूल प्राचार्या ने कहा "बेटा मैं तुम्हें रखती हूँ किन्तु तुम बी. एड. कर लो । "उसे तो नौकरी भी नही करने देना चाहते थे वे लोग किन्तु घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर शिक्षा का सदुपयोग करना चाहती थी। काम के बाद दोपहर का समय काटे नहीं कटता।उसने कहा था पहले कि " भईया मुझे बी.एड.करना है।" फ़ॉर्म भी लेकर आई किन्तु उसका फ़ॉर्म फाड़ दिया गया। तब बेला अपने भईया के दोस्त की मदद से कश्मीर में बी.एड.करने के लिए फ़ॉर्म भर दिया उसी की तैयारी कर रही थी तो घर में कोहराम मच गया।
उसने स्कूल में छुट्टी की अर्जी दी चुपचाप निकल पड़ी कश्मीर की घाटी में हालांकि उसने सुन रखा था कि वहाँ पग पग पर आतंकवादी घात लगाए बैठे रहते हैं।किंतु उसे कभी अपने जीवन का डर नहीं लगा।बचपन से निडर बेला अपने लक्ष्य की ओर बढ़ चली किन्तु मौत से ज्यादा डर उसे इंसानों से था जो आये दिन पढ़ने देखने को मिल जाता है। राजधानी में टिकट करा लिया था उसने धीरे से सबको प्रणाम कर निकल पड़ी अकेली ।
वो दिन दीपावली का था उदास थी क्योंकि घरवालों का चाहे औरत हो या मर्द कभी सहयोग नही मिला।अपनी सीट पर जाकर बैठी नीचे की सीट थी, दो लड़के सामने वाली सीट पर थे।कुछ देर में एक परिवार आया बेला अपनी किताब निकालकर पढ़ने लगी।सामने की सीट वाले लड़कों ने पूछा" दीदी आप परीक्षा देने जा रही हैं क्या, कश्मीर?" जब उन्होंने दीदी कहा तो बेला मुस्कुराई और सिर हिला दिया पुनः पढ़ने लगी ।कुछ देर में एक फ़ौजी भाई भी आये उन्हें भी हमारे साथ कश्मीर जाना था दो माह की छुट्टी काट आ रहे थे।उन्होंने मुझे वहाँ का लोकल सिम भी दिया ।
"मैडम दीपावली की देर सारी शुभकामनाएं आपको,ये मिठाई लीजिये।" बेला ने सिर उठाया देखा बहुत प्यारी महिला अपने बच्चों के साथ मिठाइयों का डब्बा लिए खड़ी थीं !" वो ना नहीं बोल सकी उठा लिया और उन्हें बधाई दी फ़िर सब मिलकर खाना खायें और सो गए।सफ़र सुहाना लग रहा था।
गाड़ी विलम्ब से चल रही थी इसलिये वो सुबह के बजाय शाम को जम्मू पहुँचे वहाँ से कश्मीर का रास्ता आठ नौ घंटे का रास्ता था,कॉलेज में बेला ने बात किया तो वहाँ से कहा गया आपलोग रात में आने का ख़तरा ना मोल लें सुबह निकलें, अब क्या किया जाय।दोनों लड़के भी परीक्षा देने जा रहे थे उन्होंने ही ये बताया। सबने मिलकर कमरा लिया और रात बिताई दूसरे दिन तैयार होकर कश्मीर के लिए रवाना हुए अब किस गाड़ी पर बैठा जाय बेला को हिदायत मिली थी कि सरदार की गाड़ी से जाना, वहाँ के जो मुसलमान हैं उनकी गाड़ी से नहीं वर्ना लंबे रास्ते से ले जायेंगे और बीच में लूट पाट करते हैं मार डालते हैं किंतु कोई सरदार मिला ही नही जिसकी गाड़ी से जायें।अंत में कश्मीरी ड्राइवर मिला एकपल को झिझकी फ़िर बैठ गई बेला को ये भी कहा गया था आगे बैठना बेला ने वहीं किया... ईश्वर का नाम लेकर कश्मीर की घाटी की ओर सब बढ़े उन्हें श्रीनगर जाना था।
कार में बैठते ही वो कुछ साल पीछे चली गई,पति की मौत के बाद सब अँधेरा -अँधेरा सा हो गया था वो किसी के आगे हाँथ भी पसारना नहीं चाहती थी।इसलिए उसने ये कठोर क़दम उठाया ताकि वो अपने जैसी महिलाओं की मदद कर सके।अभी उम्र ही क्या थी अट्ठाइस साल।
अचानक खिड़की के बाहर का नज़ारा देख रोमांचित हो गई अद्भुत दृश्य जो सिनेमा में देखा था उसने, आज सब सापेक्ष दिख रहा है स्वयं को किसी अभिनेत्री से कम नहीं समझ रही थी।पहाड़ों से गोल-गोल घूमती उसकी गाड़ी ऊँचे कद के पेड़ लताएँ क्या सुंदर मोहक बेला ने लंबी सांस ली...वो वादियों को आत्मसात कर लेना चाहती थी एकपल को भूल गई कि वो कौन है...."नारी को स्यंसिद्धा यूँ ही नही कहा जाता,उसके भीरत अपार शक्ति का भंडार होता है।"शायद कश्मीर घाटी लगभग 135 किलोमीटर लंबी और 32 किलोमीटर चौड़ी जिसके बीच से झेलम नदी अवरुद्ध चल रही है । इसके अलावा इस घाटी में कई झीलें हैं। जिसमें डल झील और वुलर झील खास प्रसिद्ध है।
काश्मीर घाटी अपनी प्राकृतिक सुंदरता, आरामदायक जलवायु, केसर की खेती, सेब के बागान इत्यादि के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहाँ अर्थब्यवस्था का आधार पर्यटन है। हालाँकि, भारत-पाकिस्तान के बीच का इस इलाके पर अधिकार के बिबाद के कारण कश्मीर की घाटी प्रभावित है किन्तु फ़िर भी ये स्वर्ग से कम नही अद्भुत आकर्षण है यहाँ। मानो पत्ता -पत्ता आलिंगनबद्ध कर लेना चाहता हो ऐसा महसूस हो रहा था उसे । दृश्य का आनंद लेते -लेते कब श्रीनगर आ गई पता नहीं चला।उसे जरा भी अफ़सोस नहीं था कि घर से इतनी दूर अकेली कैसे चली आई।बीच -बीच में एक महिला उल्टी कर रही थी तो बेला उसे बार- बारअपने पर्स से इलाईची निकाल कर दे रही थी।शाम का धुंधलका हो गया गर्ल्स हॉस्टल जाने में।ड्राइवर को लेकर जीतना डराया गया था वो उसके विपरीत था, बहुत भला मानस सबकुछ बताता आया और ये भी वादा किया कि" मैडम जी अगर आपको कहीं घूमना हो तो मुझे फोन कीजियेगा मैं ले चलूंगा।" कड़ाके की सर्दी उफ़ कैसे लिखेगा कोई ? बेला को चार लड़कियों के साथ कमरा मिला पहले कमरे में लड़कियों ने कहा यहाँ जगह नहीं, अब सब कमरे भर गए हैं, किन्तु जैसे ही बेला ने कॉलेज के डायरेक्टर को फ़ोन लगाया लड़कियाँ समझ गईं बेला कोई साधरण नहीं, सब अपने कमरे में रखने को तैयार हो गईं, अपना बिस्तर लगाया, नहाने को गीज़र का पानी गरम किया तब तक चाय और ब्रेड नीचे से लेकर आई भूख भी लग रही थी किन्तु चाय पी कर राहत मिली। पानी भी गरम हो गया।अभी तक कहीं भी खौफ़ का मंज़र नही दिखा।पुलिस की चाक चौबन्द ब्यवस्था थी,यहाँ आना बेला को बड़ा भला लग रहा था।एक दिन बाद से परीक्षा आरम्भ होने वाली थी।तब तक वो सबसे घुलमिल गई।सब एकसाथ पढ़ाई करते। सुबह- शाम दो समय चाय और खाना इतना काफ़ी था उसके लिये ,खाने की उसकी कोई विशेष आदत नही थी।वहाँ पास में सेवों का पेड़ था या दुकान भी थी सस्ता और ताज़ा सेव सबकुछ एकदम फ़िल्मी लग रहा था। परीक्षा का दिन आ गया ,सारी लड़कियाँ एक बस में और लड़के एक बस में चार बसें थी ।कॉलेज की ओर माता रानी का नाम लेकर सब चल दिये।इतनी मनमोहक जगह रंग बिरंगे घर कहीं केसर की खेती तो कहीं सेवों की बगान ऊँचे -ऊँचे बाहें फैलाये पहाड़, बेला तो मंत्रमुग्ध हो एकटक देखती जा रही थी, जैसे उन पहाड़ों ने उसे हिप्टोनाइज कर दिया हो उसका वश चले तो सदा के लिए उन पहाड़ों से लिपट जाए।उतने ही चित्ताकर्षक ऊँचे पेड़। ईश्वर की अद्भुत कलाकृति मुग्ध होकर निहार रही थी "ओ मेडम जी आपको नही जाना क्या"बस के खलासी की आवाज़ ने बेला की तंद्रा तोड़ी।वो परीक्षा हॉल की ओर बढ़ी। परीक्षा देकर निकली चारो ओर निहारती सारे वातावरण को आत्मसात करती ,उसकी भूख प्यास सब खत्म ,जैसे इतनी सुंदर जगह देख वो स्वयं को भूल गई थी, शाम की लालिमा गहरा गई थी उनके होस्टल पहुँचने तक।चाय बिस्कुट का नाश्ता फ़िर खाना दो दिन बाद परीक्षा थी कुछ लड़कियों का कार्यक्रम बना डल झील ,गुलमर्ग, चश्माशाही और हिन्दू धर्म के संस्थापक आदि गुरु शंकराचार्य का वो स्थान जहाँ वो रहते थे,उसे देखने का हालांकि उसे जाने का मन नहीं था किंतु सबकी ज़िद के आगे उसे मानना पड़ा।काफ़ी ऊँचे खड़े पहाड़ पर था ऊपर चढ़ने में ओक्सिजन की कमी महसूस होती किन्तु ऊपर जाकर अद्भुत आनंद आया बेला को ।
सबकुछ उसे सपना जैसा एक तिलिस्म लग रहा था, घूम घाम कर आते- आते रात हो गई।दूसरे दिन परीक्षा थी,सारा वारावरण बेहद रोमांचक सारे ग़म भूल गई थी वो।यहाँ से वापस जाने का मन नही हो रहा था उसका किन्तु जाना तो पड़ेगा ही, उसने घर के सभी सदस्यों के लिये कुछ न कुछ उपहार लिया।हालाँकि उसे कोई आजतक रुमाल भी नहीं दिया था। सुबह सब तैयार होकर बस में बैठे माँ का नाम लेकर जैसे ही बढ़े मुश्किल से दो तीन किलोमीटर गये होंगे कि उन्होंने देखा मेन रोड पर आग जलाकर कुछ लोग खड़े हैं और नारेबाज़ी कर रहे हैं। अब सबने बेला से कहा सर को फ़ोन लगाइए बात करने पर पता चला ड्राइवर सब जानता हैं रास्ता निकाल लेगा ।किन्तु बेला डर रही थी कही परीक्षा रद्द न हो जाये दुबारा घर से निकलना शायद ही सम्भव हो मन ही मन ईश्वर को याद कर रही थी।बस खेत से होकर जा रही थी जैसे ही रोड पर पहुँची बस रुक गई अचानक बस में पाँच,सात काले लबादे में लंबे चौड़े युवक बस में घुस आए ,सबकी सांस रुक गई उनके हाथ में बंदूके थीं जो बहुत खतरनाक थी ऐसा लग रहा था वो किसी को नहीं छोड़ेंगे।सब बेला की ओर देख रहे थे बेला ने उनसे कहा भाई आपलोग कौन हैं यहाँ क्यों....अभी बात पूरी भी नहीं हुई कि उनमें से जो बेहद खूँखार लग रहा था बेला के पास आकर बोला आप लोग कौन हैं बस में क्या कर रहे हैं।बेला बोली " भाई हमलोग बाहर से आये हैं बिहार, यूपी,एम, पी कई जगहों से परीक्षा देने ,अगर आप देर करेंगे तो हमारी परीक्षा छूट जाएगी।"
" झूठ एकदम झूठ उड़ा दो बस को कोई बचने नहीं पाए चलो"।" एकने बड़े रोस में कहा।उसने बेला की गर्दन पर बंदूक रख दी।" अरे क्यों झूठ देखिये हमारे एडमिट कार्ड ! " वो डरी नही उसने झट एडमिट कार्ड सामने रख दिया । " ठीक है आप मेहमान हो हम आपका कुछ नहीं करेंगे। हमें क्या पागल समझ लिया है ! चलो हमारे साथ !" वो बेला को पकड़ कर ले जाने लगें तो बस में जैसे सब की साँसें रुक सी गई। वो बेला को नीचे लेकर चला गया उसके साथ सारे उतर गए,बस को उड़ा दो। तभी सनसनाती हुई गोली उस बदमाश की कनपटी पर लगी और वो धीरे से बैठा तो बैठा ही रह गया।बेला झट बस में भागी " बोलती हुई कि मरूँगी तो अपने साथियों के साथ " बाहर गोलियां चल रही थी विजय सर ध्यान से एक जवान ने दूसरे को आवाज़ दी वो दो ही थे शायद किसी काम से आये थे आतंकियों को बस घेरे देखा तो आ गए और विजय तो बेला को पहचानता था। उसने खिड़की से कहा दीदी घबराना नहीं मैं हूँ ,उसका ध्यान बँट गया जिसका फ़ायदा बदमाश ने उठा लिया और विजय को गोली मार दी तबतक पुलिस का जत्था आ गया बदमाश भाग खड़े हुए ,विजय बुरी तरह ज़ख्मी हो गया था, उन्होंने मौके पर आ कर सबकी जान बचाई और भीड़ से भी बाहर निकाल दिया छोटे रास्ते से वो लोग जल्द कॉलेज पहुँचे । अचानक आई मुसीबत से कुछ देर को तो सारे के सारे सदमें में आ गए थे।परीक्षा दिया आखिर पेपर था।सब ख़ुश थे सबकुछ शांति से हुआ वहाँ के लोग भी बड़े शांत और सीधे किन्तु एक हादसे ने सबको हिला दिया कॉलेज का ग्रुप एकसाथ कश्मीर की घाटी से निकल गया अपने -अपने गंतव्य स्थान की ओर, परिणाम के इंतज़ार में ,बेला भी चल दी..।
इन्दु उपाध्याय पटना बिहार
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