जो इश्क़ में जान दे देते हैं
वो लोग दीवाने लगते हैं,
यादों के सुरमई मौसम,
हाय ! कितने सुहाने लगते हैं।
जब प्यार कभी हो जाता है,
दिल चुपके से खो जाता है,
अजनबी अपना हो जाता है,
अपने बेगाने से लगते हैं।
ये आँसू जो हैं आँखों में,
एक बेचैनी है बातों में,
उसका ख़याल जज़्बातों में,
इश्क़ के नज़राने लगते हैं।
जो वादा कर मुकर जाते हैं,
हर खुदा के आगे झुक सर जाते हैं,
मतलब परस्त, और संगदिल,
वो लोग सयाने लगते हैं।
जब चाहत की सरगम बजती है,
ज़िन्दगी दुल्हन सी सजती है,
यह दुनिया झूठी सी लगती है,
सच्चे अफ़साने लगते हैं।
मोहब्बत की गलियों में घूमते हैं,
वो एहसास-ए-सनम चूमते हैं,
ये वफ़ा,प्यार,चाहत के क़िस्से,
अक़्सर जाने -पहचाने लगते हैं।
प्रेयसी की पायल की छम-छम,
हृदय की धड़कनों की सरगम,
हाय!कितने दिलकश और प्यारे,
ये मिलन तराने लगते हैं।
ढाई लफ्ज़ प्यार के जो बोलता है,
कानों में मिश्री मानो घोलता है,
हक़ीम, मरहम दर्द-ए-दिल की दवा,
प्रेमरोगी को अनजाने से लगते हैं।
प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित
0 टिप्पणियाँ