एक निर्माता-सुष्मिता सिंह


किसी बच्चे का पहला कदम 
जब पड़ता है विद्या के आंगन में,
शिक्षक के रूप में मार्गदर्शक मिल जाते
जो ज्ञान सर्वस्य उड़ेल देते बच्चे का चरित्र सजाने में।
पहले अक्षर से रसायन ,भौतिकी सिखाने में
इतिहास से गुजर कर....
गणित के कठिन से कठिन प्रश्न हल कराने में,
शिक्षकों ने कितना दिया हमारा जीवन बनाने में।
भूगोल के मानचित्र से....
मेंढक पर शल्य चिकित्सा आजमाने में,
शिक्षक सदैव लगा रहा हमें अध्ययन कराने में 
हिंदी की किसी गंभीर विधा से....
अंग्रेजी के महान लेखकों तक से मिलाने में,
शिक्षक ने सदा जोर दिया हमें बढ़ाने में।
बहुत से विषयों से इतर....
साहसी और सौम्य मनिषी बनाने को,
शिक्षक ने तब भी सहयोग दिया,
नैतिक शिक्षा तक से लेकर नए नए खेल खिलाने में।
पहला गाना भी तो स्कूल के मंच पर ही गया था,
पीछे से जहां संगीत के शिक्षक ने हौसला बढ़ाया था।
जब हो जाती कभी दोस्तो में लड़ाई भी,
तो शिक्षक कोई कसर न छोड़ते वापस दोस्ती कराने में।
ना जाने कितनी यादें मिलने आ गई है,
जो कहीं दबी पड़ी  थी हृदय के किसी कोने में,
याद है बड़ी बड़ी गलतियों पर सजा भी मिलती थी,
पर वो ऐसे था जैसे घड़े के लिए कच्ची मिट्टी पिटती थी,
आकार के लिए आधार देते थे हमारे शिक्षक सब,
क्योंकि जीवन तब गीली मिट्टी जैसी ही थी।
मजबूत घड़े बन आज हम गढ़े जा चुके है,
पर निर्माताओं के ऋण सदा रहेगा...
हमें इस बुलंदी तक पहुंचाने में।
करबद्ध प्रणाम उन सब शिक्षक जन का,
जो स्वयं जले दूसरों को राह दिखाने में।


    स्वरचित
"सुष्मिता सिंह"



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