1942 मे गांधी जी ने देश को करो या मरो का नारा देकर अंग्रजो को ललकारा था। भारत छोडो आँदोलन के लिये बबंई की जनसभा मे उनकी एक आवाज पर सारा देश प्राणपण से तैयार हो गया था। उन्हें सभी नेताओं के साथ अंग्रेजी शासन ने गिरफ्तार कर लिया था और बिना किसी मार्गदर्शक के जनता ने भावावेश मे संपूर्ण देश में क्रांति कर दी थी। हर नागरिक ने जिससे जो बना क्रांति मे सहयोग दिया था। ऐसा लगा था जैसे कोई दैवी चमत्कार हो गया कि सबके मन मे आजादी पाने की चाह एक साथ मुखर हो गयी।"चल पडे जिधर दो पग मग मे चल पडे कोटि डग उसी ओर‘‘मैं उस समय हाईस्कूल मण्डला का छात्र था। हमने भी जुलूस निकाले थे। आजादी के नारे लगाये थे। ‘‘ वंदे मातरम‘‘ अंगे्रजो ! भारत छोडो, ‘‘इंकलाब जिंदाबाद‘‘ के नारे लगाते हुये १५ अगस्त १९४२ को हम छात्रो के द्वारा निकाले जुलूस मे नगरवासी व्यापारी और सारी जनता सब एक साथ एकत्रित हो गये थे । राष्ट्र प्रेम के गीत जोश से गाये जा रहे थे और बडे जोश से जुलूस नगर के केन्द्र स्थल चौक की ओर बढता जाता था। एक गीत की जोशीली पंक्तियां थी-
जब रण करने को निकलेगें, स्वतंत्रता के दीवाने
धरा धंसेगी, गगन झुकेगा, व्योम लगेगा थर्राने
चौक में पहुंच जूलस सभा मे परिवर्तित हो गया। तत्कालीन स्थानीय नेताओ ने भाषण दिये। मेरे सहपाठी उदयचंद जैन ने ‘‘वंदेमातरम‘ का नारा लगाकर अपना सीना खोल कर शासन को चुनौती देते हुये अपना जोश प्रदर्शित किया और यह क्या- पुलिस की एक गोली ने उसको घटना स्थल पर घायल कर दिया। जन समूह में अपार क्रोध उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था । तुरंत वीर उदय को अस्पताल पहुंचाया गया। आपरेशन हुआ पर उदय को बचाया न जा सका . १६ अगस्त १९४२ को वह शहीद हो गया। आज उसी चौक पर मंडला नगर में उदय की मूर्ति स्थापित है। ऐसी ही अनगिनत घटनायें सारे देश में हुई। इन्हीं सब का समवेत परिणाम पांच वर्षो बाद 15 अगस्त 1947 को हुई देश की आजादी के रूप में मिला .
बापू , आप अपने आचार विचार व्यवहार और सदृशयता से हमारी प्रेरणा है। आपका त्याग और कर्मठता अप्रतिम थे। देश को आजाद कराके भी आपने अपने व अपने परिवार के लिये कोई लाभ तो लिया ही नही बल्कि अपने पवित्र सिंद्धात पर ही अडिग रहे . जिसके चलते ही आपके प्राण ले लिये गये .आपने अलौकिक देवतुल्य जीवन जिया .आपके सिद्धांतो ने सारे विश्व को प्रभावित किया है . आज सारे संसार में आप सा दूसरा कोई व्यक्तित्व नहीं दिखता . आपके जाने के बाद बीते 70 वर्षो में गंगा मे बहुत पानी बह चुका है। विश्व में भारी परिवर्तन हो चुके है। विज्ञान ने असाधारण उन्नति कर कई चमत्कार कर दिखाये हैं परंतु मानवता दिन पर दिन और कमजोर होती दिखती है।
महात्मा गांधी की सी सत्यप्रियता , अडिग संकल्प शक्ति, मन की निर्मलता, शुद्धता और देश प्रेम तो कहीं नहीं दिखता . गांधी ने भारतीय ग्राम्य जीवन को केन्द्र में रखकर विकास के द्वारा राम राज्य लाने का स्वप्न देखा था। आज विकास के लिये दृष्टि में न देहात है और न ही व्यक्ति। व्यक्ति शिक्षा से बन सकता है। और ग्राम आर्थिक विनियोजना से। परंतु इसके लिये उचित मनोवृत्ति और वैसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिये। विश्व का इस ओर ध्यान नहीं है।कोरोना ने मजदूरों की गांव वापसी की है । सरकार ने लोकल के लिए वोकल का नारा दिया है ।आत्मनिर्भर भारत नया संकल्प है ।
आज समाज धर्म का पुजारी नहीं धन का पुजारी हो गया है। इसलिये सबकी राह नई है , परवाह नई है . और इसी से समस्यायें भी नई है जिनका समाधान आसान नहीं दिखता। विज्ञान की उन्नति से स्थानों के बीच की दूरियां कम हुई है। आवागमन व संचार सुविधायें बढी है इसलिये विश्व में विचारो और व्यवहारो में एकरूपता बढी है। किंतु कोरोना ने सब कुछ छिन्न भिन्न कर रखा है । जनमानस में भाईचारा, सद्भाव, सहिष्णुता, संवेदना, उदारता, कर्मनिष्ठा, कर्मठता और कर्तव्य परायणता का पुनर्भाव जागृत करना होगा ।
लोगो के आचार विचार में स्वार्थ, लोलुपता, विलासिता, अनाचार, दुष्टता बढी है। चूंकि दृष्टि धन केन्द्रित हो गई है इससे कामचोरी, भ्रष्टाचार से संग्रह , भोगवाद पारस्परिक द्वेष और परस्पर कटुता का बोलबाला है। सहयोग, देशप्रेम और सामज्ंस्य संकुचित हुये है। गुणो के इसी ह्रास और भौतिक विकास का दुश्परिणाम सब जगह दिखता है। न केवल मनुष्य के व्यवहार में वरण पर्यावरण पर भी। भूमि, जल, वायु, आकाश व ताप ये पांचो मूल तत्व जिनसे जीवन है, प्रदूषित हो रहे हैं। कोरोना ने प्रदूषण नियंत्रण किया है ।पर आज भी समस्त सामाजिक व्यवहार, आर्थिक गतिविधियां तथा राजनीति भी सांस्कृतिक प्रदूषण से अछूती नहीं रही।
नई दृष्टि से बढे नये दुख, जिनका दिखता अन्त नहीं है
उमस मान बढती जाती है लगता छुपा बसन्त कहीं है।
आज लोगो के विचारों में पवित्रता और सुधार चाहिये। पहले झोपडी के मद्धिम दिये के प्रकाश में दूर तक तो नहीं दिखता था पर उसमें आत्मा का उजास और संबंधो की मिठास का भण्डार था जो आज की गगनचुम्बी भवनों के तीव्र प्रकाश देने वाले विद्युत बल्ब की चकाचौंध में नहीं दिखता।
इस नवीन बदले हुये विश्व में देश विदेश के चौराहो पर स्थापित आपकी मूर्तियां और आपकी याद समेटे देश की मुद्रा में छपी आपकी फोटो जनमानस को गांधी के सिद्धांत नही समझा पा रही है .
मुझे लगता है कि-
अगर गांधी के सोच विचारों का मिल पाता सही सहारा
तो संभवतः भिन्न रूप में विकसा होता देश हमारा
बापू आप हमारी प्रेरणा बनें जिससे देश दुनिया के सम्मुख आपके आदर्श स्थापित कर जन मानस का जीवन सुखमय बना सके।
भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ए-1, एमपीईबी कालोनी
शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर
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