कृष्ण कन्हैया-प्रीति



 

हे बाँके बिहारी, हे कृष्ण कन्हैया,

तुम कविता,छंद, दोहा और सवैया।

 

 

देवकी की कोख से जन्मे कारागार में,

द्वापर युग में आये मनुज अवतार में,

माना पुत्र थे देवकी- वसुदेव के तुम,

किंतु नन्द- यशोदा कहलाये बाबा मैया,

हे बाँके बिहारी, हे कृष्ण कन्हैया।

 

हृदय प्रसून तुम्हें अर्पित करते हैं,

शुद्ध भक्ति भाव समर्पित करते हैं,

आकर पार लगा दो प्रभु जी,

भवसागर में है जीवन नैया।

हे बाँके बिहारी, हे कृष्ण कन्हैया।

 

तुम हो अर्जुन के उपदेशक,

जीवन चलचित्र के निर्देशक,

तुम जीवन गाड़ी के चालक,

और जीवन नौका के खिवैया,

हे बाँके बिहारी, हे कृष्ण कन्हैया।

 

गीतोपदेश का तुम हो सार,

 तुम्हारी लीला है अपरम्पार,

स्मरण करती द्रोपदी भरी सभा में,

आकर चीर बढ़ा दो भैया,

हे बाँके बिहारी, हे कृष्ण कन्हैया।

 

तुम हो सारे जगत के स्वामी,

हम सब हैं पथ के अनुगामी,

तुम्हारे प्रेमपाश में मोहन,

बन गयी मीरा एक गवैया,

हे बाँके बिहारी, हे कृष्ण कन्हैया।

 

मुरली की धुन बस गयीं मन में,

तुमको ढूँढ़ रही राधा कुँजन में,

रुक्मिणी के तुम पति हो कान्हा,

गोपियों के हो रास रचैया,

हे बाँके बिहारी, हे कृष्ण कन्हैया।

 

प्रीति चौधरी "मनोरमा"

जनपद बुलन्दशहर

उत्तरप्रदेश

मौलिक एवं अप्रकाशित





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