वो गुलाबी शाम...
और वो कोमल एहसास
जिसका तुम्हारे छूने से सुर्ख़
लाल रंग हो जाना उस शाम
की याद आती है मुझे...।।
तुम्हारा एहसास, सुरमई
बादल में लिपटा चाँद और
चाँदनी रंग की ओस की
बूँदों का बरसना याद
आता है मुझे ।।
मखमली काले बादल
की ओट में सितारे का
टूट के चाँद पे ज़ार- ज़ार
होना याद आता है मुझे ।।
मदहोश पड़े-पड़े अचानक
बिजली की चमकती आवाज़
में तुम्हारे होने केआभास का,
और चौंक के मुझें थामना
याद आता है मुझे ।।
तुम्हारा हाथ अपने
हाथ में लिए खिड़की
खोल के तुम पर लाल
सूरज को फेंकना याद
आता है मुझे।।
चले भी आओ अब
ज़िन्दगी के कितने मोड़
वापस चले गए तुम्हारे
बिना ।।
यादों से रंगीन नहीं होती
वो लाल रंग की सुबह,
स्नेह की नीली चादर पर
इंद्रधनुष बनना क्या तुम्हें?
याद आता है...वो बंजारन
लाल गुलाबी शाम...?
इन्दु उपाध्याय, पटना, बिहार
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