मनुष्य-डॉ० परमजीत


अब तक था मनुष्य- 
अन्य का दुश्मन,
हैरान कर दिया उसने-
लगा करने,
 अपने पर ही सितम l
स्वयं की रक्षा हेतु-
 न घर बैठ पाए,
बाहर जाकर न उसे-
 साथ अपने ले आए l
स्तर्क करने पर भी न करे –
अपना ध्यान ,
जाने क्यों बन रहा -
वह स्वयं से ही अनजान?
बाहर दंड दंभ है-
क्या मनुज न तुझे यह खबर है?
बार –बार  तुझे -
 तेरे स्वयं हेतु समझाते,
तिरस्कृत कर उन हिदायतों को-
हँसीं हो तुम उनकी उड़ाते l
अपनी रक्षा न कर  पाए-
किन्तु अन्य में है,
 क्यों फैलाए ? 
 यह करोना वायरस-
 है क्यों न तुझे समझ आए?
अपनी मत को जान बूझकर -
है मूढ़ क्यों बनाए ?
घर बैठ अपनों संग –
समय न बिता पाए l
दिखाते हैं ये कर्म –
तेरे संस्कार,
 संस्कार तो शायद ठीक थे-
पर किया तूने,
 इन पर अपनी मनमत का वार l
देख संसार के आँसू-
यूं उतर रहा अभी सड़क पर,
न जाने क्या हादसा हो –
ज़रा न डर,
 असर है तुझपर l
आधुनिक मानव होकर भी-
 हो रहा पथभ्रष्ट,
 अन्य  को तो होगा-
 संग में होंगे तुझे भी कष्ट l 
ईश की इस परीक्षा को-
 होगा करना तुझे स्वीकार,
अच्छे अंक आएंगे-
 जब तू करेगा ,
रख अपना स्वयं ध्यान l
कितने चिकित्सक कर रहे-
हाथ जोड़ यह आह्वान, 
मानव तू घर रहकर- 
 कर स्वयं पर इतना अहसान l
डॉ० परमजीत ओबराय



 


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