ऊँचा मकान-अलका


चार महीने के बाद गार्डन में रामू काका टहलने गए तो वहाँ उन्हें कुछ पुराने दोस्त मिल गए कुछ समय टहलने के बाद सब लोग बैठकर लॉकडाउन और घर की परिस्थितियों पर चर्चा करने लगे अपने अपने कस्ट , व्यथाएँ , जो इन 4 महीनों में भोगी थी वो शब्दों द्वारा मुखरित हों उठी “तिवारी “जी का कहना था हमें हमारा पैसा बुढ़ापे के लिए बचाकर रखना चाहिए उससे ही घर में सुख शांति और आराम है हमारी इज़्ज़त है ! “ दीनदयाल जी बोले मैं नहीं मानता बच्चों को यदि अच्छे संस्कार दो तो किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है संस्कारी बच्चे बुढ़ापे को बेहतर ढंग से सम्मभाल लेते हैं। इसी तरह सब अपनी अपनी मन की व्यथा कह रहे थे तभी “ भोलेनाथ जी बोले मैं आप सब से एक प्रश्न पूछता हूँ ....?उसका सही सही जवाब सब लोग देना ! घर की खुशियां घर की रौनक घर की लक्ष्मी और घर की इज्ज़त किससे है ....?


अलग अलग जवाब दिए गये किसी ने धन कहाँ , किसी ने बेटा , आदि पर भोलेनाथ जी किसी के जवाब से ख़ुश नहीं हुए तो उन्होंने रामू काका से कहा आप क्यों चुप बैठे हैं । आप भी जवाब दीजिए उन्होंने कहा क्या जवाब दूँ आप सब पढ़े लिखे लोग  मेरी बातों से सहमत नहीं होंगे मेरा एक ही शब्द का जवाब है ।एक ही शब्द में दुनियाँ सिमटी हुई है।मेरे घर की रौनक मेरे घर की लक्ष्मी मेरे घर की सारी खुशियां और मेरे घर की आबरू , मेरे घर की सारी  दौलत मेरी “बेटी “है।
रामू काका वहाँ से उठे और किसी का कोई जवाब सुने बिना चलते बने....
पूरे गार्डन में सन्नाटा पसर गया सारे लोग गर्दन झुका बिना एक दूसरे से कुछ कहे , अपने अपने घर की तरफ़ चलदिए , भोले नाथ बहुत ख़ुश थे उन्हें सही जवाब जो मिल गया था !



डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई



 


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