ऊंचा मकान-कंचन


नीता अपने झुग्गी बस्ती से रोज सामने की साफ-सुथरी कॉलोनी देखती थी उनके बच्चे भी सुंदर सुंदर और साफ दिखते थे वह ऊंची ऊंची इमारत और खिड़की से देखते बच्चे जब नीता को सड़क किनारे काम करते देखते तो नीता का मन अपनी इस व्यथा पर और दुखी हो जाता और वह खुद की किस्मत को कोसने लगती। आखिर भगवान ने मुझे इस गरीब परिवार में ही जन्म क्यों दिया मुझे भी उस ऊंची इमारत की राजकुमारी क्यों नहीं बनाया अपने फटे पुराने कपड़े देख कर और चिढ़ जाती और अपनी अम्मा से लड़ने बैठ जाती कहती अम्मा हमको इस झोपड़े में नहीं रहना हमारा भी एक अच्छा मकान लो ना तुम बाबा को कहो एक अच्छा मकान बनाएंगे अम्मा उसे अपने पास बुलाई और गाल पर हाथ फेरते हुए बोली बिटिया वह सामने के मकान वाले अमीर हैं उनको भगवान ने सब दिया है पैसा भी और किस्मत भी हमारे पास यह दोनों नहीं है अब जो है जैसा है हमें जीवन जीना तो पड़ेगा ना और नीता चिड कर वहां से चली गई
      1 दिन सवेरे सवेरे जब नीता की आंख खुली तो उसने कुछ बाहर से आती हुई आवाज सुनी उठकर देखा तो एक अजनबी बाबा से बातें कर रहे थे आप सभी लोग यह जगह खाली कर दो यहां बड़ी बड़ी बिल्डिंग बनाएंगे और आप लोगों को हम कहीं और मकान देंगे रहने के लिए पर नीत के पिताजी नहीं मान रहे थे वह अजनबी बहुत समझा रहा था फिर भी बाबा उसकी कुछ नहीं सुन रहे थे बाद में वह सज्जन हार मान कर चले गए तब अम्मा और मैं बाबा के पास आकर बैठे अम्मा ने पूछा बाबा से आप क्यों नहीं तैयार हुए हमें वह कितना अच्छा मौका दे रहे थे इस जगह से छुटकारा पाने का पर आप तो अपनी जिद पर ही अड़े रहे तब बाबा बोले यह जगह जैसी भी है हमारी है हम यहां के मालिक हैं आज वह हमें अच्छा मकान दे रहे हैं पर कल को कहेंगे यहां से भी कहीं और जाओ तो क्या हम जिंदगी भर यही करते रहेंगे और मैं मेहनत कर रहा हूं एक ना एक दिन हमारा भी ऊंचा मकान होगा बाबा की यह बात सुनकर मेरा मन भी शांत हो गया और मैं खामोशी से लग गई अपने कामों में।


 


कंचन जयसवाल
नागपुर महाराष्ट्र



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