कभी कितना विशाल था हमारा देश ...मैं आप को बीते समय की यात्रा में ले जा रहा हु। अब वो पीढ़ी शायद जीवित हो जिस ने फ्रंटियर मेल में और ग्रांड ट्रंक एक्सप्रेस में सफर किया हो ,ये ग्रांड ट्रंक एक्सप्रेस जो GT एक्सप्रेस के नाम से अब भी चलती है कभी चला करती थी पेशावर से मंगलौर तक कुल 104 घंटे लगते थे करीब करीब पांच दिन का सफ़र था उस दौर में । फ्रंटियर मेल जाया करती थी बॉम्बे से पेशावर तक। रेल्वे ब्रिटिश भारत की सब से महत्वपूर्ण देन है । कोलाबा टर्मिनस से 1 सितम्बर 1928 को पहली बार फ्रंटियर मेल को पेशावर के लिए रवाना किया गया था । ये छोटे स्टेशनों में नहीं रुकती थी । बॉम्बे से बड़ोदा ,रतलाम मथुरा दिल्ली ,लाहौर रावलपिंडी और अंत में पेशावर । इसे फ्रंटियर मेल इसलिए कहा गया क्यों की ये पेशावर तक जाती थी भारत की सीमा का अंतिम बड़ा शहर था पेशावर । उसके आगे बॉर्डर थी अफगानिस्तान की सीमा लगती थी । बड़ी खूबसूरत ट्रेन थी । इस में लक्ज़री डाइनिंग कार भी होती थी। 1934 में इस में रईसों और अंग्रेज़ो की सुविधा के लिए एयर कूल्ड बोगी भी लगायी गयी । AC तो उन दिनों संभव नहीं था ट्रेन में इसलिए इसे ठंडा रखने के लिए बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल होता था । फ्रंटियर मेल बड़ी ही प्रतिष्ठित रेल थी जिसे BB&CI कंपनी चलाया करती थी । सोचिये बॉम्बे से दिल्ली रावलपिंडी लाहौर होते हुए पेशावर तक ,इतना बड़ा था भारत । कपूर खानदान के पितामह पृथ्वीराज कपूर की यादो में ये ट्रेन हमेशा रही क्योंकि ये उनके गृह नगर पेशावर को बॉम्बे से जोड़ती थी इसी ट्रेन से वो कभी अपनी जन्मभूमि पेशावर छोड़ कर बॉम्बे आये थे । GT एक्सप्रेस यानि ग्रांड ट्रंक एक्सप्रेस उन दिनों यानि 1930में सब से लंबी दूरी चलने वाली रेल थी । कुल 104 घण्टे का सफर पेशावर से कर्णाटक के मंगलौर तक । बाद में इसे लाहौर से चलाया गया । अब देश छोटा हो गया । GT एक्सप्रेस अब दिल्ली और चेन्नई के मध्य चलती है और फ्रंटियर एक्सप्रेस अब गोल्डन टेम्पल एक्सप्रेस कहलाती है और अमृतसर तक जाती है । क्योंकि अब लाहौर ,रावलपिंडी ,पेशावर ,कराची हम खो चुके है ।( ये फ्रंटियर मेल की वास्तविक तस्वीर है ,हमारे अखंड भारत की शान )
संजय
बिलासपुर
9993666879
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