शिक्षक दिवस विशेष
पहले बहुत सम्मान था ,आज वह सम्मान में कमी आई है।पुरानी शिक्षा प्रणाली और वर्तमान की शिक्षा प्रणाली में ज़मीन असमान का अंतर है। पुराने समय में गुरुकुल जाकर विद्या प्राप्त करते थे और अपने गुरु की सारी आज्ञा का पालन करते थे। गुरु और शिष्य आश्रम में ही निवास करते थे। शिष्यों को भी काम देते थे, उसे वह बड़ी शालीनता के साथ करते थे। इसका उदाहरण हमें रामायण और महाभारत में देखने को मिलता है, महाभारत में भी कौरव और पांडव ने आश्रम जाकर शिक्षा प्राप्त की थी। श्री कृष्ण और सुदामा दोनों की मित्रता तो मिसाल ही है, वह गुरुकुल में ही हुई थी।
परन्तु तब एक दोष भी था कि केवल राजा महाराजाओं के पुत्रों को ही गुरुकुल में शिक्षा दी जाती थी। शिक्षा का वास्तविक अर्थ होता है, कुछ सीखकर अपने को पूर्ण बनाना। किसी भी राष्ट्र अथवा समाज में शिक्षा सामाजिक नियंत्रण, व्यक्तित्व निर्माण तथा सामाजिक व आर्थिक प्रगति का मापदंड होती है। हम सभी जानते हैं शिक्षा हमारे जीवन के लिए अति आवश्यक है शिक्षा के बगैर मनुष्य पशु के समान होता है पहले जहाँ शिक्षा गुरुकुल में गुरु दिया करते थे,
वही आजकल के आधुनिक जमाने में स्कूल कॉलेजों में शिक्षक शिक्षा देते हैं ।
आधुनिक शिक्षा प्रणाली और प्राचीन शिक्षा प्रणाली मैं काफी अंतर है पहले जहाँ बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल में रहते थे वह लगभग 25 वर्ष तक अपने गुरु के साथ रहते थे और गुरु ही उनके लिए सब कुछ होते थे। गुरु उन्हें तीर कमान चलाना, महापुरुषों का ज्ञान एवं संस्कृति का ज्ञान एवं कई तरह के ज्ञान दिया करते थे जिससे विद्यार्थी का भविष्य उज्जवल होता था वह जीवन में एक अच्छा नागरिक बनता था।परन्तु आज की आधुनिक शिक्षा के युग में लोगों की जिंदगी में बहुत परिवर्तन हुआ है आज आधुनिक शिक्षा प्रणाली स्कूल-कॉलेजों में दी जाती है।
बच्चा सुबह या दोपहर के समय स्कूलों जाता है और 4 या 5 घंटे पढ़ाई करने के बाद वह घर पर चला आता है घर पर वह एक अलग माहौल में रहता है उसके माता-पिता अपने कार्य में व्यस्त रहते हैं और वह घर पर आकर खेलकूद, TV आदि देखकर अपना मनोरंजन करता रहता है और अपने समय को नष्ट कर देता है क्योंकि उसे देखने वाला कोई नहीं होता। इस आधुनिक युग की शिक्षा प्रणाली में सबसे ज्यादा मशीनी ज्ञान या वैज्ञानिक ज्ञान की दी जाती है लेकिन नैतिक ज्ञान पर कोई विशेष जोर नहीं दिया जाता है।इंसानियत गुणों का अभाव होता जा रहा है
मानवीय संवेदनाओं का हांस हो गया है , वास्तव में नैतिक शिक्षा ही एक इंसान को इंसान बनाती है। नैतिक शिक्षा में सच्चाई, ईमानदारी, दया, धर्म एवं नैतिक ज्ञान आदि की शिक्षा दी जाती है जिससे शिष्य का चारित्रिक विकास होता है। लेकिन आधुनिक शिक्षा में लोग सिर्फ पैसा कमाने पर जोर देते हैं वह चरित्र को बनाने पर ज्यादा ध्यान नहीं देते।चरित्र पतन हो पर नोट आने चाहिए इसपर विशेष ध्यान देते है चारित्रिक कोई मोल नहीं रहा आज !
बच्चों को सू सू करना नहीं आता पर स्कूल जाना है क्योंकि आधुनिक शिक्षा प्रणाली विद्यालय केंद्रित हैं। करीब ढाई साल की उम्र से ही बच्चे शिक्षा लेना शुरू कर देते हैं। शिक्षा का स्तर धीरे-धीरे इतना बढ़ता जाता है कि बच्चा उसमें ही अपना पूरा समय लगा देता है, उसे खेल कूद और अन्य गतिविधियों के लिए समय नहीं मिल पाता। आज शिक्षा समानता है, बालक और बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा दी जाती है। आज शिक्षा के बहुत सारे विकल्प है। सरकारी विद्यालय तथा प्राईवेट विद्यालय दोनों के विकल्प मौजूद हैं। प्राचीन शिक्षा में अस्त्र-शस्त्र की विद्या दी जाती थी किंतु आज के समय में किताबी ज्ञान होता है।
पहले जहा पेड़ों के निचे मौखिक रूप से। पढ़ाया जाता था !
जिसे विद्यार्थी अपने मस्तिक में लिखते क्यूंकि उस समय पेपर नहीं हुवा करता था और यह शिक्षा उन्हें जीवन भर याद रह जाती थी। इसके विपरीत आधुनिक शिक्षा नोटबुक और किताबों से आगे बढ़कर प्रोजेक्टर, टेबलेट और गूगल तक सिमित रह गई है। आज किसी भी चीज की जानकारी चाहिए तो हमारे बच्चे उसे गूगल बाबा पर सर्च करते है। अतः आधुनिक शिक्षा प्रणाली में नैतिक ज्ञान का आभाव है।
नई शिक्षा नीति इस प्रकार की होनी चाहिए कि विद्यार्थी को बस किताबें पढ़ पढ़ कर याद करने के अलावा कुछ ऐसे रोजगार उन्मुख कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए जिससे अगर भविष्य में विद्यार्थी के सामने विद्या आगे समय के लिए अर्जित करने का मौका ना हो तो उसके पास खुद का व्यवसाय खोलने का इतना अनुभव तो हो कि जिससे रहे अपने परिवार और खुद की जीविका चला सके आजकल के समय में जब हम देखते हैं कि जितने भी विद्यार्थी सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए ट्यूशन लेते हैं या बहुत सारी किताबें खरीद कर पढ़ते रहते हैं और उन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हुए उन्हें पास कर लेते हैं और उसके बाद जब वह नौकरी करते हैं तब यह देखते हैं कि जिन किताबों का उन्होंने इतने साल तक अध्ययन किया उनमें से उनके दैनिक कार्य में 1% भी काम नहीं आया तो हमें चाहिए कि ऐसी शिक्षा नीति बनाई जाए कि जो विद्यार्थियों के जीवन में आगे भी काम आए और उन्हें उनसे ज्ञान की प्राप्ति हो! ज्ञान के साथ साथ चारित्र निर्माण पर ध्यान देना चाहिए , गुरु शिष्य में परस्पर सहयोग की भावना हो आदर व सम्मान की भावना हो ! दोनों तरफ़ से एक स्वस्थ मानसिकता के साथ शिक्षा का ज्ञान देना व लेना ईमानदारी से हो ।
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
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