रेखा की मनमानी-अलका

र्मीयो के दिन इतने लम्बे होते है कि कटते ही नहीं उपर से उमस व गर्मी के मारे हाल बेहाल ! नयना बहुत परेशान रहती है गर्मीयो में ..आज सब काम ख़त्म कर पंखा की हवा खाने लगी तभी ख़्याल आया चलो तोरण से कुछ बात करती हूँ  । 
और नयना ने अपनी सखी तोरन को फ़ोन लगाया हाय “हाय कैसी है नयना “ नयना तोरण मैं ठीक बस गर्मी सहन नहीं होता पंखा कूलर कुछ काम नहीं करता , तेरे भाई साहब को कह कह कर थक गई पर ( ए सी ) नहीं लगवाते .तोरण छोड़ ऐसी की बात कुछ पता चला क्या रेखा का ..अरे क्या किया रेखा ने नयना उतावली हो बोली ..तोरण कल सीमा से मिलने उसके घर गई थी रो रो कर आंखे सूजा ली थी पूछा तो रोते रोते बताया रेखा को जानती हो कितनी मनमानी करती है किसी की सुनती नहीं है न डरती है , अपने पिता से नहीं भाई से नही बस मन की करनी है अभी तक तो ठीक  था अब कह रही है अपनी पंसद से शादी करेगी और वह भी पहले से लड़का पंसद कर लिया साथ में नौकरी करता है , कोई बंगाली है , मना किया की हम ब्रह्माण है ब्रह्माण लड़के से ही शादी करेंगे .,तो कहती है ठीक है मैं कोर्ट मैरिज कर लूँगी आप लोग मत आना मैं शादी तो कमल से ही करुगी ..कल से घर में मातम मना है ...तोरण ने आगे कहाँ मैंने सोचा कि मैं बात करु रेखा से तो बुलाया आई और बोली आंटी नमस्कार परन्तु कुछ मम्मी के कहने से समझाना चाहती हैं तो मैं पहले ही कह देती हूँ ! 
मैं कुछ सुनना न समझना चाहती हूँ ! मेरा फ़ैसला अटल है नहीं बदल सकता ...नयना मैं क्या करती सीमा को समझाया की तुम ही ज़िद छोड़ दो रेखा तो ज़िद्दी है मानेगी नही और मैं चली आई  .,फ़ोन करुगी बोल कर तुम कहो ...क्या करती मैं !“नयना तुम क्या कर सकती थी जो लड़की माँ बाप की नहीं सुनती वह तुम्हारा कया सुनती रेखा से बात करना मतलब अपनी बेइज़्ज़ती कराना है । 
तोरण “पर नयना सीमा का दुख नही देखा जाता ...बोल कल चलती है दोनों जाकर हाल-चाल ले आते हैं ठीक है कल दो बजे चलते है पाँच बजे तक आ जायेगे !दुसरे दिन नयना और तोरण सीमा के घर पहूच गई सीमा दोनों को देखकर इतनी खुश हुई मानो “मरते को तिनके का सहारा मिल” गया हो ..तीनों सहेलियाँ  बहुत देर बात करती रही ..चाय पीने के बात नयना बोली सीमा क्या हाल है रेखा के मानी या नहीं , सीमा कहाँ सुन रही है वो ज़िद्द पकड़ी है बचपन से ही मनमानी करती आई है हमने कह दिया है सोच कर जवाब दो , रेखा के पापा ने कह दिया चली जाओ फिर कभी शक्ल मत दिखाना न कभी हमसे मिलना हम कह देंगे हमारे लिऐ रेखा मर गई ! पर वह तो कहती है ठीक है एक बार गई तो कभी नहीं आऊँगी आप का घर अपवित्र करने आप ब्रह्माण है मैं छोटी जात से शादी कर रही हूँ मेरी रंगों में तब नीच जात का खून तोड़ेगा आप के घर आने से आप सब अपवित्र हो जायेगे तो नहीं आऊँगी !रेखा के पापा टूट गये है कहते हैं मेरी गलती है जरुरत से ज़्यादा छूट दे दी थी , अब परिणाम भी हम ही भोगेंगे ! नयना बोली तू कहे तो एक बार मैं बात करु ..सीमा कोई फ़ायदा नहीं , चिकने घडे पर पानी है ...
१० दिन की बात है चली जायेगी कोर्ट मैरिज करेगी ! नयना बोली बुला मैं एक बार बात तो करु ..ठीक है सीमा ने आवाज़ लगाई रेखा बहार आओ ...रेखा आई सबको नमस्कार किया नयना कैसी हो सुना है शादी कर रही हो ! हाँ आंटीजी पर घर वाले ख़ुश नहीं है ! तो क्यों कर रही हो सबकी ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी है , माँ बाप को दुखी कर खुश रह पाएगी ..ये कभी ख़ुश नहीं होंगे इन्हें सिर्फ़ ब्राह्मण लड़का चाहिए चाहे वह कैसा भी हो अच्छा ही है क्यों की जात का है ! आंटी ये जात पात मैं नहीं मानती इंसानियत होनी चाहिए ...ये जात पात बनाया किसने  आदमी ने ही न भगवान ने नहीं फिर क्यो हम जात पात के चक्कर में उलझे है , हर इंसान इंसान है बस मैंने मेरे लिए क्या अच्छा है वह सोच कर ही फ़ैसला लिया है । हमारे विचार मिलते है हम एक दूसरे को समझते है , अच्छी नौकरी है मैं बहुत खुश रहूँगी और न रहूँ तो भी यह फ़ैसला  मेरा था जो भी होगा मंज़ूर है किसी को दोष नहीं दूगी , पर करुगीं अपने मन की ,आप चाहें तो मुझे आशिर्वाद दे ! आने वाली सात तारिख को कोर्ट में शादी कर रही हूँ माँ तो नहीं आयेगी आप आयेगी न चाहते हुए भी नयना नेकहां  हाँ बेटा जरुर आऊँगी बता देना ! 
धन्यवाद कह कर रेखा चली गई 
सीमा बोली नयना तू रेखा की शादी में जरुर जाना ... मुझे हाल चाल मिलता रहेगा ! 
बेटी ज़िद्दी है तो क्या ...? मैं माँ हूँ ध्यान तो लगा रहेगा , रेखा बहुत मनमानी करती है वो माँ का मन नहीं समझ सकती पर मुझे उसकी चिंता है ,नयना बोली चिंता मत कर मैं हाल चाल लेती रहूँगी अब चलती हूँ तुम्हारे भाई साहब का आने का समय हो गया है !चलो उठो तोरण चलना चाहिए ।दोनों चली आई तोरण बोली सीमा को भी इतना सख़्त नहीं होना चाहिए जब रेखा नहीं मान रही तो कर दे न “
नयना तुम नहीं समझोगी बेटी की मॉ का दर्द , 
तोरण को बताओ न सब मुझे ही चुप करा देते हैं मेरे बेटी नहीं है न 
नयना फिर कभी बात करेंगे 
अब घर आ गया है , चल फिर मिलते है ! 
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई- मौलिक



 


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