रोहित के पिता अखबार पढ़ते हुए चाय की घूंट लेकर गुस्से में बोले यह गरीब लोग सुधरेंगे नहीं वैसे ही भारत में इतनी बड़ी महामारी का संकट है और यह लोग लाकडाउन का पालन न करते हुए कैसे इधर-उधर बिखर रहे हैं और पैदल ही अपने गांव घर लौट रहे रहे हैं क्या इन्हें किसी की भी परवाह नहीं खुद भी मरेंगे और जहां जाएंगे वहां बीमारी फैलाकर दूसरे को भी ले डूबेगे। बगल में बैठी उनकी पत्नी सुनते ही तुरंत बोली नहीं ऐसा ऐसा क्यों सोचते हो गरीब हैं बेचारे वह भी रोजगार पर आश्रित हैं इस लॉक डाउन की स्थिति में उनके पास काम नहीं शहर में रहकर खाएंगे क्या और वैसे भी इनके खुद के मकान भी तो नहीं हैं कहां रहेंगे? भूखे प्यासे तड़पने से अच्छा है कम से कम अपने गांव में किसी तरह गुजर-बसर कर ही लेंगे। रोहित के पिता सुनकर बोले तुम्हें कुछ पता भी है सरकार इनको राशन दे रही है फिर भी यह पैदल ही निकले जा रहे हैं। चलो जाने दो मरने दो इन्हें क्या फर्क पड़ता है थोड़ी आबादी ही तो कम होगी ।
तभी अमेरिका से रोहित का फोन आता है। हेलो पापा कैसे हैं आप? रोहित की घबराती हुई आवाज सुनकर उसके पापा ने पूछा क्या हुआ बेटा? पापा यहां स्थितियां बहुत तनावपूर्ण हैं हमारे एरिया में इस महामारी की वजह से बहुत से पासिटिव केस आए हैं। सरकार ने सब कुछ सील कर दिया है। अब तो घर में खाने को कुछ भी नहीं है और बाहर जाने का मतलब है अनुशासन तोड़ना पिताजी कुछ दिन और यहां रहूंगा तो कल तक मेरी बुरी खबर ही आयेगी। प्लीज कुछ कीजिए नहीं तो मैं पैदल ही निकल पड़ूंगा कम से कम मेरे अंतिम समय में मुझे देख तो लेंगे, नहीं तो मैं यही तड़प तड़प कर मर जाऊंगा।
इतना सुनते ही मानो उसके पिता के अखबार पड़ने के दौरान निकले वह शब्द जैसे उन्हें ही तीर की तरह चुभ रहे थे और वह एकटक पैदल जाते हुए मज़दूरों की तस्वीर देखते रह गए। तभी अचानक अखबार हांथ से छूट जाता है और चाय की घूंट गले में अटक कर रह जाती है।
यशोधरा मेहता (प्रवक्ता)
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श्याम नगर (कानपुर) 208013
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