शिक्षक-ज्‍योति शर्मा

शिक्षक दिवस विशेष


हृदय विदारक करुण कहानी
 शिक्षक के नयनों का पानी
नित हाथों से चाक चलाया
बालू को भी कलश बनाया
पारस बनकर कनक तपाया
बंजर में भी बीज लगाया
स्वयं जला हूँ तपन सही है
पर क्या मेरा भाग्य यही है
सबने बस उपहास किया है
सँग मेरे परिहास किया है
वो आदर सत्कार नहीं है 
क्यों मेरा आभार नहीं है
कितने कितने योद्धा पाले
कितनों के परिवेश संभाले
गोविंद ने भी मान बढ़ाया
अपने से था बड़ा बताया
कलयुग का ये चक्कर न्यारा
शिष्य करें अपमान हमारा
जैसे सबने ठान लिया है
हमको नौकर मान लिया है
इतना कमजोर नहीं है शिक्षक
पुलिस कमिश्नर और अधीक्षक
मैंने सब तैयार किये हैं
राष्ट्र प्रेम सम्मान बड़ो का
मैंने तो संस्कार दिए हैं
हुकुम चलाते भामाशाहों
इतना खुद पर मत इतराओ
फिरसे बीज गिरेगा भू पर
फसलें आएंगी फिर ऊपर
सींचोगे किस जल से उनको
मिला सकोगे कल से उनको?
खुद ही उन पर फूल लगाना
फिर तुम हमको नहीं बुलाना।


ज्योतिशर्मा
जयपुर



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ