सुहाने पल-कंचन


जाने कहां गए वह पल 
हर पल याद आते हैं
बचपन का वह अल्लहड पन
गुड़िया और कंचे का खेल
माटी का घर आंगन 
छांव देता नीम का पेड़
सब कुछ जैसे छूट गया
जाने कहां गए वह पल
हर पल याद आते हैं
फिर जवानी ने दस्तक दी
लोक लाज हमें समझ आने लगी
अब लोग हमें समझाने लगे
आगन और दहलीज का फर्क बताने लगे
जाने कहां गए वह पल 
हर पल याद आते हैं
अब हम मैं भी बड़प्पन आ गया
हम भी दुनियादारी समझने लगे
सर से जब सफेद बाल झांकने लगे
तब हम भी अच्छे और बुरे का
पाठ पढ़ाने लगे
जाने कहां गए वह पल
हर पल याद आते हैं
ए काश ऐसा हो
फिर बचपन लौट आए
और एक बार फिर हम
कहीं मस्ती में खो जाए
जाने कहां गए वह पल
हर पल याद आते हैं।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ