कितना आसान होता है न
आईने में अपना अक्स देखना
स्वयं को निहारना
प्रसन्नता से खिलना
आईना झूठ नहीं बोलता
किंतु हम हैं कि नज़रदाज
कर जाते हैं अपनी कमियाँ
इससे थोड़ा कठिन होता है
अक्सर दूसरों को आईना दिखाना
उनकी कमियाँ बताना
सत्य से अवगत कराना
इस बात की परवाह किए बिना
कि धूमिल हो सकता है अपना भी आईना
तो लाजमी है पहले स्वयं उसमें ताकना
सबसे कठिन होता है देखना
दूसरोंं द्वारा गया दिखाया गया आईना
वास्तविकता को समझना
हकीकत को मानना
आईना सत्य नहीं छिपाता
किंतु क्या ये उचित है ?
आभार की जगह क्रोधित हो जाना
--©किरण बाला
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