सुनो तुम्हें दिल पे एतबार है कि नहीं
कहीं किसी का कोई राजदार है कि नहीं ।
झुकी निगाह मेरी एक सवाल करती हैं
नजर तुम्हारी सही मुझसे प्यार है कि नहीं।
उठे हुए ये कदम ढूंढते हैं मंजिल को
कहो तुम्हें ये यक़ीन एकबार है कि नहीं।
लगी चोट मेरे दिल पे है यूँ कहीं न कहीं
देख झुका के आईने में तू गुनहगार है कि नहीं।
सजाए कैसे बता महफ़िलें मोहब्बत की
भरा किसी दिल में प्यार है कि नहीं।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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