आसमान-किरण बाला

मेरे भीतर बसता है कहीं न कहीं
 एक विस्तृत-सा आसमान 
जो अक्सर शान्त,मौन और 
निष्प्राण-सा रहता है
और जब विचारों के बादल
छोटी-छोटी टोलियों में आते हैं न
तो ऐसा लगता है मानो
मेरी भावनाओं से आँख-मिचौली खेल रहे हों 
और इस खेल की उथल-पुथल में 
मैं किसी बालक की तरह
हँसने, बिलखने और रूठने लगती हूं 
कभी-कभी तो यह टकराव
इतना भीषण होता है कि मैं 
स्वयं को बहने से रोक ही नहीं पाती
पर देखो न,मेरी बहती हुई भावनाएँ भी
भला कहाँ व्यर्थ जाती हैं !
वो शब्दों के रूप में संचित होकर
पोषित करती हैं
पुष्प सम मुरझाए चेहरों को
निराश मन-सी बंजर धरा को
उगती हैं जिनमें 
उम्मीद की कोंपलें, सपनों के पुष्प
और जागृति के फल
और जब यही फल किसी की
क्षुधा को शान्त करते हैं न 
तो लगता है मानो,वो बादल
कहीं छंट से गए हैं 
अब वो ही शान्त,मौन और
 निष्प्राण-सा आसमान
इंद्रधनुषी रंगों में, निखर जाता है
हाँ, सच ही तो है
मेरे भीतर बसता है,कहीं न कहीं 
एक विस्तृत सा आसमान 


                ----किरण बाला
                   (चण्डीगढ़)



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