'आसमान "
आसमान में छाते बादल काले काले
जोर-जोर बरसते हैं
कितना भी चाहे यह रुक जाएं पर जोर-जोर बरसते हैं
फिर जब मन चाहे इनका हवा के साथ यह उड़ते हैं
उड़ते उड़ते ना जाने फिर कहां यह पहुंचते हैं
आसमान सा ऊंचा उठे हम
मन यह बार-बार मचलता है
पर मन को कौन समझाए
जब आसमान जैसा बनना है
तो इरादों को भी ऊंचा होना है
जब इरादे हो पक्के तो कौन हमको डिगा सकता है
आसमान को जब छूना चाहे हाथ बढ़ाकर कोई भी छू सकता है ।
शिल्पा अरोड़ा
विदिशा
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