राजेश्वरी देवी ने बचपन से देखा था कि बेटे के जन्म पर बधाइयां दी जाती है, बहुत ख़ुशी मनाई जाती है।पिता के कुल आठ भाई थे ,सबके दो-दो बेटे थे।पूरे परिवार में रज्जो यानी राजेश्वरी ही इकलौती बेटी थी।उसके जन्म पर मनाए गए मातम और उसकी माँ को सुनाई गई कटु बातें उसने अपनी माँ से सुनी हुई थी पर आज जब रज्जो अकेली ही सबसे खूब लाड़- प्यार पाती थी तो फूली नहीं समाती थी।जीवन तेजी से आगे बढ़ने लगा ,रज्जो एक सम्भ्रांत परिवार के गुणी बेटे से ब्याह दी गई।स्वयं को बड़ी मान मन्नत से विवाह के सात वर्ष पश्चात पुत्र की प्राप्ति हुई।अब वक्त रेत की तरह हाथों से फिसलने लगा।बेटे की शिक्षा उच्च पद पर नौकरी ,सुंदर सुशील सीधी-साधी कन्या से विवाह सब समय से हो गया।बहु उम्मीद से हुई तो राजेश्वरी देवी के पाँव जमीन पर नहीं टिकते थे।एक बेटे की कामना करने लगी थी वो,लेकिन बेटी ना हो जाय ये ख़याल उसे बार-बार घबरा देता था।चुपके से भ्रूण परीक्षण करवाया,बेटी थी। ऐसे तीन बार बहु के साथ नाइंसाफी कर दी।चौथी बार पुत्र रत्न की प्राप्ति पर राजेश्वरी बहुत प्रसन्न थी।मानो नियति पर विजय का जश्न मना रही हो।
एक साल बाद आज सुबह से राजेश्वरी बहुत दुखी,बेचैन और अब तो उद्विग्न हो उठी थी। सुबह से पूरे मोहल्ले में,अपनी सहेलियों के घर फोन करके पता कर चुकी थी पर हर जगह निराश हाथ लगती थी।कोई कहता अभी गई है ,कोई कहता आएगी तो भेज देंगे।किसीने कहा पूरा ग्रुप है।सभी जगह जा रही है पर रज्जो को कोई कन्या भोजन करवाने के लिए नही मिली।सुबह से शाम तक भूखी बैठी कन्या की प्रतीक्षा करती रही। तरह तरह से खोजने के प्रयास किये पर सब विफल!
अचानक लगभग सात वर्ष की कचरा बीनने वाली छोटी कन्या को देखकर रज्जो को जैसे स्वार्गिक आनन्द मिल गया हो।उसको घर मे बुलाया,भोजन करवाया,खूब दान-दक्षिणा दी,भाव विभोर होकर उसके चरण छूए और गले से लगाकर सिसक गई।आज आत्मग्लानि के मवाद को रज्जो खुद के आंसुओं से धोने लगी।
माधुरी व्यास"नवपमा"
इंदौर मध्यप्रदेश
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