एक सच्‍चा शिक्षक- संदीप अवस्‍थी

मेरे जीवन के शिक्षकों ,
आपको प्रणाम ।
एक सच्चा  शिक्षक सदैव मोर्चे पर रहता है। सैनिकों की भांति उसे मात्र आपदा में ही योग्यता दिखानी नही  होती है, बल्कि 24 by 7 अर्थात हर समय वह अपना सर्वोत्तम करने का प्रयास करता है।  चाहे विद्यार्थी ,लड़कीं लड़का दोनों, को तराशकर योग्य बनाना हो, उसे खेलो से लेकर डॉ, इंजीनियर, आईएएस,pcs, राजनेता,अभिनेता,सैनिक,शिक्षक आदि सभी मे शिक्षक की भूमिका रही है। विशेषकर स्कूल की प्राथमिक कक्षाओं के शिक्षक। जिन्हें हम विश्वविद्यालय में आने के बाद भूल जाते है या हेय दृष्टि से देखते हैं । जबकि हमारे व्यक्तित्व की नींव मां से भी अधिक उसी प्राथमिक शिक्षक ने रखी है। आगे तो हम सिर्फ मशीनी ढंग से किताबो,नोट्स को घोंटना सीखते हैं बस। लेकिन जिन अनखुली पंखुड़ियों समान आप और हम को सर्वोत्तम ढंग से जिन्होंने पल्लवन में योगदान दिया उन्हें सदैव याद और नमन मैं करता हूँ।
मेरी प्राथमिक शिक्षा की खन्ना मेडम,प्राचार्य, शकुंतला शर्मा,,और अंग्रेजी, दुर्गेश मैडम हिंदी,लता मेडम गणित का मैं सदैव ऋणी रहूंगा।  बता दूं उस वक़्त मैं 1 से 5 तक क्लास का फर्स्ट रेंक होल्डर था। मेरे ताऊजी हमे कभी लेने आते शाम की शिफ्ट होती स्कूल की तो कुछ मिठाई मेरे लिए लाते। एक बार किसी ने कहा बाउजी हमें नही देंगे मिठाई ? तो उसी वक़्त ताऊजी ने पूरे स्कूल में मिठाई मंगवाकर बंटवाई। 
आगे मेरी मम्मी,जो उस वक़्त सरकारी स्कूल की शिक्षिका रही ,का ऋणी हुँ। जो हम दोनो छोटे बच्चों को 7 और 8 वर्ष के तीसरा  भाई तब नही हुआ था, हमारे स्कूल की छुटी कर लेने पर अपने साथ बस में अपने स्कूल ले जाती थी।  वहां वह क्लास में जाती और हम दोनों को पुस्तकालय में छोड़ जाती। वहीं से पढ़ने के संस्कार पड़े।पूजनीय पिताजी श्री राम गोपाल जी अव्सथी, आप रेलवे की नोकरी से शाम को घर आते और चाय पीकर वापस बाजार 3 किमी दूर  जाते और किताबो की दुकानों से हर सप्ताह  किताबे लेकर आते । मैं सदैव ऋणी हुँ।ताई जी आदरणीय शकुंतला देवी इतने रोचक ढंग से बचपन मे हम लोगो को कहानियां सुनाती मानो दृश्य सजीव हो उठे हो। जब आज मेरी कहानियों या लिखी फिल्मों की तारीफ होती है ,तो मैं इन सबको श्रेय देता हूँ। रामलीला दिखाने ताई जी ले जातीं।  इन चारो व्यक्तित्व का प्रभाव पड़ा मुझ पर । मेरा मुझमें कुछ नही।पिताजी 2 वर्ष पूर्व अचानक से छोड़ गए हमे। ताई जी  डेढ़ दशक पूर्व । ताऊजी और मम्मी जी हैं और जिंदगी चल रही है। और नई किताबी,रचनाएँ,फिल्में ,सेमिनार,अवार्ड्स सब चल रहे हैं। और मेरी सबसे बड़ी शिक्षिका,आदि गुरु  परम पूजनीय माता श्री निर्मला देवी का दिया यह जीवन उनके ही आशीर्वाद से चल रहा है।
अपने सभी गुरुओं को जिन्होंने मुझे निखारा,तराशा और आगे भी मेरा मार्ग प्रशस्त करते रहें, इसी शुद्ध इच्छा से उन सभी को नमन करता हूँ। इन पंक्तियों के साथ 
" आपके अदृश्य,स्नेह भरे हाथों ने ही मेरी उंगली थाम रखी है, / बस यह जीवन ही नही जरा मरण से मुक्त हो जाऊं ,तब तक थामे रखना मेरा हाथ। 


आपका ही
संदीप अवस्‍थी, अजमेर, राजस्‍थान।



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