बात मेरे बचपन की है मैं अपने ननिहाल जो बिठूर के पास विष्णु पुर गाँव है वहाँ जाना आना लगा रहता था। गांव में सब एक दूसरे को उनके गाँव के नाम से बुलाते हैं मेरी नानी को सब गंगा पार वाली और दूसरी नानी को देपालपुर वाली , पनवपुरवा वाली आदि कह कर बुलाते थे।मुझे समझ तब नहीं आता था। हमारे सामने एक नानी रहती थी उनको हम भूलवाईन नानी कहते थे वो बाल विधवा थी वो हमेंशा । हर बात में कहती अलका बिट्टी हमारे जमाने में तो पति को चेहरा कोई न देखता था ।
मैं कहती नानी तुम लोग पहचानते कैसे थे । आवाज़ से पहचान लेत रहिन हमारे जमाने में लड़कियों को फ़्राक नहीं पहनने देते थे...बिट्टी हमारी शादी हुई तब आठ साल की थी .हमें कुछ शादी का मतलब नहीं मालूम था । शादी का हम तो इनसे मंडप में झगड़ पड़ी किसी बात पर सबने समझाया तब बैठी वापस कह दिया नहीं बैठना है पास ..हमें का मालूम राहें ..भगवान हमें मिलने से पहले ही उपर बुला लेंगे मैं उत्सुकता वश पूछती नानी आपने नाना को देखा नही ..तो कहती हमार ज़माना और था .. एक बार सब के साथ हम गंगा नहान गंई रहन तब तुम्हार नाना मिले थे हम तो पहचानती नहीं थी अम्माँ ने बताया तब देखा था एक छलक हमार ससुर ने हमें पेडे दिये थे दोना भर वही याद है ..हम कभी ससुराल नहीं गई गौना के पहले तुम्हार नाना दुनिया छोड़ गये। दूसरी शादी क्यों नहीं की आपने मैंने कहाँ ।तब कहती है हमारे जमाने में तो बेटियों को विधवा होने पर बाल काटवा देते थे मुडंन ( टकला) करवा देते सफ़ेद साड़ी बस जीवन भर ऐसे ही निकाल दिया ,कोई सुख दुख नहीं बस अम्माँ जैसा कहती घर का काम भगवान का भजन जीवन कट गया अब सुनती है लड़कियाँ पति को तलाक देती है , भाग कर शादी करती है । हमारे जमाने में तलाक नहीं होते थे .. कोई जानता ही नहीं था जैसा भी ससुराल हो औरतें दुख सहती मार खाती रहती थी पर ससुराल से मायके बिना बुलाये नहीं आती थी । न लाइट थी न आज जैसी सुविधाएँ बस जीवन कट गया ..मैं आज भी भूलवाईन नानी को नहीं भूली उनका चेहरा सर टकला सफेद साड़ी कृश काया बड़ा तप करती थी पहले की औरतें सारी उम्र एक मिनट की याद में बिता देती थी।
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
0 टिप्पणियाँ