हमारे जमाने में-मीरा द्विवेदी

ये क्या किया मालती? जी दादी सासू माँ। नई पौत्रवधु को दहीबड़े बनाते देख दादीसासू माँ बोली। अरे!ऐसे बड़े कहीं बनते हैं। तुमने बड़े के बीच में छेद नही किया। ये तो अशुभ मानते हैं।    सुमन, तुमने भी नही देखा, बहु आ गयी,तो इसका मतलब कि तुम कुछ करो ही ना। अरे कम से कम उसे तौर तरीके, शुभ-अशुभ आदि बातें तो समझाओ। सुमन.. जी माँ जी कहकर चुप हो गई।

    मालती, असमंजस की स्थिति में दादी माँ से पूँछती है।  दादी माँ... अरे, हमारे जमाने में दही- बड़ा जब बनते, तो बड़े में बीच में उंगली से। आर-पार छेद किया जाता था।बिना छेद वाले बड़े  तो अशुभ कार्यो में बनते हैं,     और हाँ हमारे जमाने में...समूची उड़द की दाल भी नहीं बनती थी।ये सब वस्तुएं अशुभ कार्यो में बनती हैं।आज आधुनिकता की दौड़ मे सब जायज है।कोई कुछ मानता ही नही है।

 


स्वरचित- मीरा द्विवेदी"वर्षा"

हरदोई, उत्तर प्रदेश।



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