"हमारे जमाने में तो सिर से पल्ला सरकता न था बड़ों के सामने मुँह खोल कर बोलना तो दूर आँख भी नहीं उठती थी " कहते हुए सासु माँ अपने जमाने की न जाने क्या क्या बाते सुना रही थी।लकड़ियों को धोना फिर उन से चूल्हा जला कर खाना बनाना , धुंए से रसोई का भर जाना और तो और मुश्किल के दिनों में तभी के तभी लंबे बालों को धो कर आना और फिर काम में लग जाना।
नई नई शादी हो कर आई सुरभि चुप चाप बातें सुनती रहती और सोचती कैसे हो सकता है ऐसा हमने अपनी माँ को कभी नहीं देखा ऐसे । बस यूँही एक दिन फिर सुरभि के मुँह से निकल ही गया ,"आप ठीक कहती हैं इसी लिए अब लड़की के माता पिता मिक्सी, व वाशिंग मशीन जरूर देने लगे हैं और गैस भी की कहीं कोई आज की सासु माँ भी लकड़ी धो कर चूल्हा न फूँकवाये उनकी बेटी से" । अकस्मात मुँह से निकली बात का अर्थ उसे बाद में समझ आया जब हमारे जमाने में तो.का पुराण बन्द हुआ ।
निशा"अतुल्य"
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