हिंदी दिवस -अलका

हिंदी पखवाड़ा चल रहा था।जगह जगह हिंदी दिवस के नाम पर कार्यक्रम हो रहे थे खूब पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा था
पूरे शहर में रोज़ कवि-सम्‍मेलन करवाए जा रहे थे।
पं डा. प्रो .शिवदत्त शुक्ल आज बहुत उदास थे , उन्हें कोफ़्त हो रही थी इन झूठे व दिखावटी कार्यक्रमों से वो जानते हैं पैसा कमाने का कुछ लोगों ने ज़रिया बना लिया है । साल भर अंग्रेज़ी के गुणगान करेंगे पर हिंदी पखवाड़े पर हिंदी के लिए प्रेम दिखाएँगे ! पंडित जी इसी तरह विचारों में उलझे थे की प्रो . शर्मा बोले अरे डाक्टर साहब कहाँ खोए हो ! उठो चलो चाय पी कर आते है।
प्रो शुक्ल  सुना है आज भंवर कुआ चौराहे पर बड़ा कवि सम्मेलन है मुझे बुलाने आए थे मेने मना कर दिया ! शर्मा जी ठीक किया वहाँ कविता नही होती फूहड़ पना है हास्य के नाम पर भद्दे व गंदे चुटकुले सुनाए जाते है ! दिमाग ख़राब हो जाता है सुन कर लगता है तुरन्त स्टेज से उतार दे।वहाँ जाकर खून जलाओ या झगड़ा करो , इससे तो अच्छा दूर ही रहो ,
हाँ शर्मा जी आप सही कह रहे है।प्रो शुक्ल जी बोले अच्छे साहित्यकार हैं पर उन्हें सुनता कौन है जो साहित्य सेवा इमानदारी से कर रहे है उसी को अपना सब कुछ मान बैठे है उनको पैसा नहीं देंगे पर इन चुटकुले बोलने वालों पर धन की वर्षा करेगे क्या होगा इस देश का प्रो शिवदत्त ने लम्बी सांस ले कर कहाँ ।
शर्मा जी छोड़ो लो चाय पीओ चिंता मत कर अच्छे साहित्यकारों का समय आयेगा वही टिकेंगे । ये पानी के बुलबुले है देखना आप कोई याद नहीं करेगा । मैं तो आज के बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हूँ कहाँ जा रहे आधुनिकता का ऐसा चश्मा पहना है की कोई बुराई नज़र ही नहीं आती ! शर्मा जी छोड़ो हम हमारा काम ईमानदारी से करें बस आज समझाने का समय नहीं है ! चुप रहो अपना काम करो तब तक चाय ख़त्म हो गई , पैसे देकर उठे
तो डाक्टर शुक्ल बोले शर्मा जी यह बताओ हिंदी दिवस के नाम पर कहीं कुछ सार्थक कार्यक्रम होगा ! इच्छे कार्यक्रम होंगे तभी ये घटिया कार्यक्रम बंद होंगे हमें पहल करनी चाहिए !
शर्मा जी आप की बात में दम है तो शुरु करो शर्मा जी आप मैं पुरा साथ दूँगा ,
१४ सितम्बर को करुगा में पुराने “साहित्यकारों के नाम एक शाम “
अपने ही कालेज में आज घोषणा आप से करवाता हूँ शर्मा जी तेश में आ गये थे
प्रो शुक्ल ठीक है पैसों के लिए सबसे चंदा ले लेंगे और साहित्य कारों की उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ करवाएँगे .....
शर्मा जी बोले क्या बात है पं.शुक्ल जी चेहरा खिल गया आप का ,
डॉ . शुक्ल यह बताओ तुम मुझे कभी पंडित कभी डॉ . शुक्ल कभी प्रो . शुक्ल कभी पं शुक्ल एक नाम से नहीं बुला सकते नहीं दोस्त एहसास होता में किसी विद्वान के साथ हूँ , मुझे ख़ुश रहने दो तुम्हें तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । तुम्हारे नामों की व्याख्या मैं मंच पर करुगां  ।
तुम से कौन उलझे चलो क्लास का वक्त हो गया शाम को प्रिंसिपल के केबिन में मिलते है परमिशन लेनी होगी ।
शर्मा जी क्लास लेने गये ,इधर  शुक्ला जी जयशंकर प्रसाद , निराला , मैथलि शरण गुप्त . पंत  को याद करने लगे !


डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
अलका पाडेंय (अगनिशिखा मंच)
देविका रो हाऊस प्लांट  न.७४ सेक्टर १
कोपरखैराने  नवि मुम्बई च४००७०९
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