कलाकार की सोच-प्रबुद्ध घोष

भाषा आंतरिक रूप से पहचान से जुड़ी होती है, और इसमें अक्सर एक राष्ट्र की पहचान शामिल होती है। एक सीमा, एक नाम, एक ध्वज, या एक मुद्रा के अलावा, जो एक देश को एक सम्मानजनक और अद्वितीय राष्ट्र बनाता है वह उसकी राष्ट्रीय भाषा है। दरअसल, राष्ट्रीय भाषा एक स्पष्ट संकेतक है जो किसी देश की राष्ट्रीय पहचान का प्रतिनिधित्व करता है। भाषा एक संवेदनशील मुद्दा है। यह एक राष्ट्र और एक व्यक्ति की विरासत का भी हिस्सा है।


सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रवाद अपने 'हम बनाम उन्हें’ मानसिकता के साथ, यहां तक ​​कि उन राष्ट्रों में भी माना जा सकता है, जहां बहुभाषिकता के परिणामस्वरूप, हम’और उन दोनों का एक ही मूल आबादी में अस्तित्व है; इन सवालों का जवाब देने के लिए, इस तरह के देशों के भीतर गतिशीलता के उदाहरणों को देखने में मदद मिलती है। यद्यपि भाषा एक सांस्कृतिक मार्कर के रूप में कार्य करती है, एक समूह जो एक समूह को एक साथ जोड़ता है, वह समूह पहचान का एक पवित्र पहलू भी है।


हमारे जैसे राष्ट्र में, जो 5 से अधिक भाषा-परिवारों की 20 से अधिक भाषाओं की एक मजबूत उपस्थिति बनाए हुए हैं, हमें अपनी विचार प्रक्रिया और संवादात्मक संस्कृति के साथ-साथ सूचनाओं को साझा करने के लिए कम से कम कुछ करीब मंच की आवश्यकता है ताकि हिंदी हमेशा बनी रहे हमारे देश में एक आवश्यक स्थिति।


वर्तमान समय में हम इस बात से इंकार नही कर सकते कि हिंदी के उपर दिन-प्रतिदिन संकट गहराता जा रहा है। तथ्यों और किताबी बातो के लिए यह ठीक है कि हिंदी हमारी राजभाषा है पर इस बात से हम सब वाकिफ है, हममें से अधिकांश लोग बड़े मंचों और स्थानों पर हिंदी बोलने से अलग भावशून्य या असहज महसूस कर रहे हैं। गांधी जी ने 1917-18  में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने कि बात कही थी। जिस पर आगे चल कर 14 सितंबर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद, हिन्दी को राजभाषा के रूप में संविधान में जोड़ा गया। इस प्रकार हम 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाते आए हैं और हिंदी के उत्थान मे अपना योगदान देते रहे हैं और सदा देते रहेंगे।


इस लेख के साथ, हम "अनुभव सोम" के असाधारण चित्रण को साझा कर रहे हैं और "जयप्रकाश चौहान" की हार्दिक पेंटिंग-कला के साथ। दोनों युवा पीढ़ी के कलाकारों में से हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नाम और प्रसिद्धि पा रहे हैं। उन्होंने इस विशेष दिन और "हिंदी" भाषा के प्रति अपनी विचार प्रक्रिया और सम्मान को चित्रित और अंकित किया है।


क्या हम इस हिंदी दिवस के आगे हिंदी भाषा की प्रगति को राजभाषा की स्थिति से राष्ट्रभाषा में बदल सकते हैं?

प्रबुद्ध घोष 
पूना, महाराष्‍ट्र


 



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