किसान-किरण बाला

भोर के प्रथम पहर से पहले
खेत की ओर करता प्रस्थान
चटनी रोटी को संग लिये
कर छाछ का शीतल पान


पंछी की चहचहाहट से पहले 
खेतों में जा पहुँचता किसान
नवाँकुर को देख निकलते
हो हर्षित गुनगुनाता गान


सपनो संग अंकुर पल्लवित होते
उमंग का होता नित विस्तार 
बच्चों की पढ़ाई, किताबें 
खेल खिलौने और उपहार


शीत की कंपन,लू के थपेड़े
सहता रहता वो हर हाल
वर्षा बाढ व अंधड़ ओले
पड़ती जब बेमौसम की मार


असल ब्याज के फेर में उलझे
कर्ज में डूबता रहता किसान
मोल भी तो देखो उसकी मेहनत के
क्या लगा रहे हैं साहूकार


दस रूपये की चीज के बदले
देते हैं रूपये वो कुल चार
टूटे सपनो को वो लिए
झेल रहा है दुगुनी मार
खोखले वायदे सुन सुन के
है प्राण तजने को मजबूर किसान


             ----©किरण बाला
                    ( चण्डीगढ़)



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ