लघुकथा समर्पण -  अलका 

शिक्षक दिवस विशेष
गुरु देव जी ने बड़े नियम बनाये थे अपने गुरुकुल के वो शिष्यों के प्रति बड़ें सख़्त थे जरा भी लापरवाही सहन नही करते थे ,’
इसके वावजूद भी उनका बडा नाम था लोग उनके गुरुकुल में अपने बच्चो को भेजना चाहते थे गुरुदेव के गुरुकुल में तब तक अध्यापन की अनुमति नही थी जब तक वह कम से कम दस वर्ष अपने गुरुके सानिध्य में न रहे ! नंनदन नाम का छात्र दस वर्ष कठिन परिश्रम करके गुरुदेव का दर्जा प्राप्त करने में सफल हो गया !
एक दिन वह अपने गुरुदेव से मिलने गया बहुत तेज बारिश हो रही थी इसलिये नंनदनने खड़ाऊँ पहनी और छाता लेकर आश्रम पंहुचा कर उसने खड़ाऊँ व छाता बहार छोड़ कर गुरुदेव के कक्ष में प्रवेश किया ,गुरुदेव ने तुरन्त सवाल किया लगता है नंनदन तुमने खडाऊ और छाता दलान  में ही छोड़ दिया है !जी गुरुदेव अच्छा यह बताओ तुमने अपना छाता बायीं ओर रखा है या खड़ाऊँ ?नंनदन को इसबारे में कुछ याद नही था अत:वह उत्तर न दे पाने के कारण लज्जित हो गया और एहसास करने लगा में जागरुक नागरिक नही बन पाया हूँ , मुझमें अभीपुरी तरह व सतत जागरुकता नही आई है !वह गुरुदेव के चरणो में गिर पडा और क्षमा याचना कर अपना अध्यापन पुन: दस वर्षों तक जारी रखा अथक परिश्रम व जागरुकता के अभ्यास में लगा रहा और दस वर्ष बाद वह इतना निखर गया की लोग अब नंनदन के क़िस्से सुनाने लगे तथा उसे गुरुकुल की व्यवस्था सौंपी गई व्यक्ति के लगातार जागरुक रहने से व पूरी तरह समर्पित होने पर ही गुरु कहलाने का हक़ प्राप्त करता है यह बात नंनदन ने अपनी गुरु भक्ति वलजागरुकता व समर्णपनसे सिद्ध कर दी।



डॉअलका पाण्डेय -मौलिक रचना 
अगनिशिखा 
9920899214



 


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