माथे की बिन्‍दी-राजेश

माथे की बिन्दी है हिन्दी, भारत माँ की शान ।
देश के बसते इसमें प्रान ।।


वैदिक वाड़्यमय की वातिन ।
वैभवमय साहित्य की नातिन ।
अवधी व्रज बुन्देली  बहिना, सबरे रस की खान ।।


गाथा वीर काल का सासो ।
जामे रचे गये थे रासो ।।
जगनिक और परमाल भाल का , यह है पवित्र निशान ।


मीरा सूर का यह है गायन ।
इसमें तुलसी रची रामायन ।।
पंचमेल कबिरा की खिचडी , है साखि सबद प्रमान ।


पंत , निराला और मधुशाला ।
छंद शास्त्र मणियों की माला ।।
गुप्त सुप्त साहित्य धरा का , यह ही कवियों का गान ।


आजादी के  जो दीवाने ।
इसमे ही थे उनके गाने ।।
जय हिन्द जय वंदे मातरम् , का था कितना सम्मान ।


राजेश तिवारी "मक्खन"
झांसी उ.प्र.



 


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