निजीकरण का अभिप्राय यह है कि आर्थिक क्रियाओं में सरकारी हस्तक्षेप को उत्तरोत्तर कम किया जाए, प्रेरणा और प्रतिस्पर्धा पर आधारित निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जाए, सरकारी खजाने पर बोझ बन चुके अलाभकारी सरकारी प्रतिष्ठानों को विक्रय अथवा विनिवेश के माध्यम से निजी स्वामित्व एवं नियंत्रण को सौंप दिया जाए।
निजिकरण एक व्यावसायिक व्यवस्था है. जहा सरकार की कार्य प्रणाली अधुरी है वही इस व्यवस्था का इस्तेमाल किया जाता है , अंग्रेजों ने अपने समय आबादी पर सही तरिकेसे नियंत्रण रखने हेतू सरकारी नोकरियां दि थी । अपने ही लोग उनके लिये काम किया करते थे.उनकी नोकरी करने के लिये अलग अलग लालच दिखाये गये थे. उस जमाने मे सरकारी नोकरी कोअच्छा नही समझा जाता था।
आजादी के बाद से जनसंख्या के हिसाब से सरकारी नौकरी थी लेकीन रोजगार मतलब सरकारी नौकरी कम हो गयी.जनसंख्या बढ गयी और सरकारी नौकरी कम हुई. दुसरी तरफ से निंजी कंपनिया खुली और उन्होंने भी यही तरीका ईस्तमाल किया सरकारी नौकरी के बजाय निजी कंपनी मे लोग काम पसंद करने लगे.जैसे बडे डॉक्टर नामी गिरामी अस्पताल मे काम करते है, स्वास्थ शिक्षा विभाग मे पढाने वाले शिक्षक निजी मेडिकल कालेज मे पढाने लगे हैं। अंग्रेज़ी स्कूलों के अध्यापक आदि मिलों में काम करने वाले आज जैसे रिलायंस कम्पनी , जिंदल , टाटा आदि आर्थिक सुधारों के संदर्भ में निजीकरण का अर्थ है सार्वजनिक क्षेत्र के लिये सुरक्षित उद्योगों में से अधिक-से-अधिक उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए खोलना। इसके अंतर्गत वर्तमान सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को पूरी तरह या उनके एक हिस्से को निजी क्षेत्र को बेच दिया जाता है।निजी करण के काम रास्ते बनाना.निजी करण बडे़ अस्प्ताल बनाना.निजी करण रहने के लिये वसती गृह रेलवे स्थानक बनाना ऐसे काम निजी करण से किये जाते हैं कोई काम का ठेका औज़ार बनाना थियेटर बनाना आदि बहुत से काम।
निजीकरण के समर्थकों का मानना है कि निजी बाजार कारक मुक्त बाजार प्रतियोगिता के कारण सरकारों की तुलना में अधिक कुशलता से माल अथवा सेवा प्रदान कर सकते हैं। सामान्यतः यह तर्क दिया जाता है कि समय के साथ इससे कीमतें कम होंगी, गुणवत्ता में सुधार होगा, अधिक विकल्प मिलेंगे, भ्रष्टाचार कम होगा, लाल फीता शाही नहीं होगी और त्वरित वितरण होगा। कई समर्थक यह तर्क नहीं देते हैं कि हर चीज का निजीकरण किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक, बाजार की विफलता और प्राकृतिक एकाधिकार समस्याजनक हो सकते हैं। कुछ पूँजी पति चाहते है की निजीकरण होना चाहिए।
निजीकरण के लिए बुनियादी आर्थिक तर्क यह दिया जाता है कि अपने उद्यमों को सुनिश्चित रूप से अच्छी तरह चलाने के लिए सरकारों के पास बहुत ही कम प्रोत्साहन होते हैं। राज्य के एकाधिकार में, तुलना की कमी एक समस्या है। दूसरे यह कि केंद्र सरकार प्रशासन और मतदाता जिन्होंने उन्हें चुना है, को इतने सारे और अलग-अलग उद्यमों की क्षमता का मूल्यांकन करने में कठिनाई होती है। एक निजी मालिक, अक्सर जिसे विशेषज्ञता और एक निश्चित औद्योगिक क्षेत्र के बारे में अधिक ज्ञान होता है, मूल्यांकन कर सकता है और कम संख्या के उद्यमों में अधिक कुशलता से प्रबंधन को दंडित या पुरस्कृत कर सकता है।
फायदे सरकारी धन की बचत होती है।सरकारी कर्मचारी अपने काम पर ध्यान दे सकते है ा
नुकसान- नफाखोरी को बढ़ावा,बेरोजगारी को बढ़ावाश्,गुणवता में कमी ,सेवा ठीक नहीं ,मन मानी का बढ़ना
आदि निजीकरण से नुक़सान ज़्यादा फ़ायदा कम है । जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ जाने की सम्भवना रहती है
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
अलका पाडेंय (अगनिशिखा मंच)
देविका रो हाऊस प्लांट न.७४ सेक्टर १
कोपरखैराने नवि मुम्बई च४००७०९
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