"माँ मैंने तुम्हें बताया था ना आज मेरे कुछ दोस्त खाने पर आने वाले हैं ,और तुम अभी तक अपने लेखन में लगी हुई हो ।" खीजते हुए मुकुल बोला नीरा ने लिखते लिखते ही नजर ऊपर उठाएं बिना ही कहा "क्यो मुकुल रानी कहां है उससे कहो वो तैयारी करेगी तुम्हारे दोस्तों के खाने की ।" "क्यों माँ आप क्यों नही" झल्लाते हुए मुकुल बोला "क्योंकि अब मुझे आराम चाहिए मेरे बरसों की कुछ इच्छाएं है जिन्हें जिम्मेदारियों के रहते मैंने दफ़न कर दिया था कहीं गहरे में । मैं उन्हें जीना चाहती हूँ , और सुनो अब तुम्हारा विवाह हुए भी दो साल से ऊपर हो गया है ,तुम्हें व रानी दोनों को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी ,व व्यवहारिक जिम्मेदारी समझनी चाहिए ।" "उफ्फ मुझे क्या पता था आप ऐसा कहेंगी वरना मैं दोस्तों को बुलाता ही नहीं कितनी बेज्जती होगी मेरी"। "क्यों क्या तुमने मुझसे पूछ कर निमंत्रण दिया था" ।"नहीं मगर रानी को तो बताया था" धीरे से दबे स्वर में मुकुल ने कहा।" और वो सज संवर कर निकल गई अपनी दोस्त से मिलने आखिर क्यों क्या उसकी कोई जिम्मेदारी तुम्हारे प्रति नहीं ?" लिखते हुए ही कहा नीरा ने । मुकुल निःशब्द खड़ा माँ के चेहरे पर आते भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगा, जो उसे जिम्मेदारी के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दे रही थी अपने कार्य में लिप्त।
निशा"अतुल्य"
देहरादून
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