हमारे वायुमंडल में ओज़ोन परत का बहुत महत्त्व है क्योंकि यह सूर्य से आने वाले अल्ट्रा-वॉयलेट रेडिएशन यानी पराबैंगनी विकिरण को सोख लेती है। लेकिन इन किरणों का पृथ्वी तक पहुँचने का मतलब है अनेक तरह की खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का जन्म लेना। इसके अलावा यह पेड़-पौधों और जीवों को भी भारी नुकसान पहुँचाती है। पराबैंगनी विकिरण मनुष्य, जीव जंतुओं और वनस्पतियों के लिये अत्यंत हानिकारक है।
ओज़ोन (ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमंडल में बेहद कम मात्रा में पाई जाती हैं। पृथ्वी की सतह से 30-32 किमी. की ऊँचाई पर इसकी सांद्रता अधिक होती है। यह हल्के नीले रंग की तीव्र गंध वाली विषैली गैस है।वायुमंडल में ओज़ोन का कुल प्रतिशत अन्य गैसों की तुलना में बहुत ही कम है। प्रत्येक दस लाख वायु अणुओं में दस से भी कम ओज़ोन अणु होते हैं।नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जब तीखी धूप के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तो ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है।
वाहनों और फैक्टरियों से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड व अन्य गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण करती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 8 घंटे के औसत में ओज़ोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिये।
नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जब तीखी धूप के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तो ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है।वाहनों और फैक्टरियों से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड व अन्य गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण करती है।आज हमारी लपारवाहियों और बढ़ते औद्योगिकरण के साथ ही गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाली खतरनाक गैसों के कारण ओज़ोन परत को भारी नुकसान हो रहा है और इसकी वज़ह से ओज़ोन प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहा है।
सुरक्षा कवच कहा जाता है, लेकिन पृथ्वी पर लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण इस कवच की मज़बूती लगातार कम होती जा रही है। ओज़ोन का एक अणु ऑक्सीजन के तीन अणुओं के जुड़ने से बनता है। इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे एक विशेष प्रकार की तीव्र गंध आती है। भूतल से लगभग 50 किलोमीटर की ऊँचाई पर वायुमंडल में ऑक्सीजन, हीलियम, ओज़ोन, और हाइड्रोजन गैसों की परतें होती हैं, जिनमें ओज़ोन परत पृथ्वी के लिये एक सुरक्षा कवच का काम करती है क्योंकि यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों से पृथ्वी पर मानव जीवन की रक्षा करती है। मानव शरीर की कोशिकाओं में सूर्य से आने वाली इन पराबैगनी किरणों को सहने की शक्ति नहीं होती।
ओज़ोन परत में होने वाले क्षरण का कारण मनुष्य खुद है, जिसके क्रियाकलापों से जीव-जगत की रक्षा करने वाली इस परत को नुकसान पहुँच रहा है। मानवीय क्रियाकलापों ने वायुमंडल में कुछ ऐसी गैसों की मात्रा को बढ़ा दिया है जो पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करने वाली ओज़ोन परत को नष्ट कर रही हैं।
ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण के लिये क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि रासायनिक पदार्थ भी ओज़ोन को नष्ट करने में योगदान दे रहे हैं। क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस का उपयोग हम मुख्यत: अपनी दैनिक सुख सुविधाओं के उपकरणों में करते हैं, जिनमें एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, रंग, प्लास्टिक इत्यादि शामिल हैं।ओज़ोन परत के क्षरण की वज़ह से सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सकती हैं और पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं के लिये हानिकारक भी होती हैं।
मानव शरीर में इन किरणों की वज़ह से त्वचा का कैंसर, श्वास रोग, अल्सर, मोतियाबिंद जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। साथ ही ये किरणें मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायु को ‘वायुमंडल’ कहते हैं। वायुमंडल अनेक प्रकार की गैसों का मिश्रण है और यह गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वज़ह से पृथ्वी से बंधा हुआ है। वायुमंडल में वायु एवं गैसों की अनेक संकेंद्रित परतें हैं, जो घनत्व, तापमान, एवं स्वभाव की दृष्टि से एक-दूसरे से पूर्णत: भिन्न हैं। वायुमंडल की वज़ह से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। वायुमंडल पृथ्वी के सभी प्राणियों के लिये सुरक्षा कवच का काम करता है। यह सूर्य की तेज़ किरणों को फिल्टर करने के बाद धरती पर आने देता है। यह पृथ्वी पर तापमान के संतुलन और जलवायु नियंत्रण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ओजोन स्तर के क्षरण के प्रभाव पाये जाते है मनुष्य की त्वचा की ऊपरी सतह की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। क्षतिग्रस्त कोशिकाओं से हिस्टामिन नामक रासायनिक पदार्थ स्त्रावित होता है, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाने से निमोनिया, ब्रोन्काइटिस, अल्सर नामक रोग हो जाते हैं। ओजोन स्तर के क्षरण के कारण सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से त्वचा का कैंसर हो जाता है। ओजोन स्तर के क्षरण से आनुवांशिक विसंगतियाँ, विकृतियाँ तथा चिरकालिक रोग उत्पन्न होंगे। सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों से आँखों के घातक रोग-सूजन, मोतियाबिन्द, घाव हो जाते हैं।
ओजोन के क्षरण से तापमान में वृद्धि हो रही है। ओजोन स्तर के क्षरण के कारण सूक्ष्म जीवों एवं वनस्पतियों में प्रोटीन खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है। उत्पादक-शैवाल नष्ट हो जाते हैं। शैवालों के नष्ट हो जाने पर जलीय जीव जात-मछलियाँ, जलीय पक्षी, समुद्र में रहने वाले स्तनी प्राणी व्हेल, सील और मानव भी प्रभावित होता है।ऐसे करें ओजोन परत की सुरक्षा ऐसे सौंदर्य प्रसाधन और एयरोसोल और प्लास्टिक के कंटेनर, स्प्रे जिसमें क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) विद्यमान हैं उन उत्पादों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।पर्यावरण के अनुकूल उर्वरक का प्रयोग करें।अपने वाहन से अत्यधिक धुआं उत्सर्जन को रोकने के लिय वाहनों का नियमित रखरखाव करें। इस तरह से हम अपने वाहनों के पेट्रोल और कच्चे तेल का बचत कर सकते हैं। और ओज़ोन परत के क्षरण का बचाव कर सकते है ।
अलका पाडेंय (अगनिशिखा मंच)
देविका रो हाऊस प्लांट न.७४ सेक्टर १
कोपरखैराने नवि मुम्बई च४००७०९
मो.न.९९२०८९९२१४
ई मेल alkapandey74@gmail.com
0 टिप्पणियाँ