फैसला-मीरा

मुदित* और मयूरी भाई-बहन, आपस में एक-दूसरे की खूब निभती थी।कोई भी कार्य बिना एक-दूसरे के सहयोग के नहीं करते थे।हलांकि मयूरी, मुदित से छोटी थी, पर वो बहुत समझदार, निर्णय लेने में निपुण एवं वाकपटु थी।     सुनयना, जो कि मुदित, मयूरी की माँ थी... बचपन से ही कोई भी निर्णय नही ले पाती।कारण उनकी निर्णय शक्ति अत्यंत क्षीण थी।एक से अधिक विकल्प तो उसे उहापोह की स्थिति में डाल देते।क्या करूँ क्या ना करूँ?इसी उधेड़ बुन में पड़ी रहती।यही वजह रही कि सुनयना के हाथ से कई अच्छे-अच्छे अवसर निकल गए।चाहे वो अध्ययन काल में विषय चयन प्रक्रिया हो,सेवा काल में उचित अवसर का चुनाव हो या फिर आवास स्थल के स्थान का चयन हो।परेशान हो, वह अपने निर्णयों का फैसला अन्य लोगों से करवाती।   सुनयना ने यह तय कर रखा था कि अपनी कमी को अपने बच्चों में नहीं हावी होने देगी।प्रारम्भ से ही उनके जीवन के हर क्षेत्र में आने वाले अवसरों में से उचित अवसर का फैसला, उन्हीं को करने को कहेगी, ताकि अपने जीवन काल के उचित पहलुओं का फैसला वह स्वयं कर सके औंर उनके उचित-अनुचित फैसले में माँ सुनयना की भी स्वीकृति रहेगी।दोनों मार्गों  का अवलोकन सुनयना करायेगी तो,पर चलना किस पर है, इसका फैसला करने का हक बच्चों का ही होगा।

     सुनयना की इस बलवती सोच व संकल्प का परिणाम यह हुआ कि उसके बच्चे अपनी माँ के सहयोग से, अपने जीवन से जुड़े हर क्षेत्र के अहम् फैसले लेने में सक्षम रहे।उन्हें किसी का मुँह नहीं देखना पड़ा और ना ही दूसरों के थोपे हुये फैसले निभाने पड़े ।

 

रचनाकार-मीरा द्विवेदी"वर्षा"

हरदोई, उत्तर प्रदेश।

 


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