फैसला-निशा


 


"इस रोज की प्रताड़ना से निजात पाना चाहती हूँ माँ मुझे राह दिखाओ" बिस्तर पर पड़ी सिसकती सरिता कराह उठी ।   आज उससे उठा ही नहीं गया वो डरी हुई बिस्तर पर ही लेटी आँसू बहा रही थी ,अनंत के उठने का समय करीब आ रहा था और सरित की झुर झुरी बढ़ रही थी। उसने करवट ली नजर माँ दुर्गा पर जैसे ही पड़ी मन में विचार भाव प्रबल हुआ सौम्यता व करुणा स्त्री का गहना है परंतु समय आने पर उसे काली बन फैसला लेना पड़ता है ।     एक बिजली सरिता के पूरे बदन में दौड़ गई ,अनंत ने आंखे खोली बिस्तर पर लेटी सरिता को देखा ,झटके से उठ सरिता को बिस्तर से खींचा, सरिता ने कस कर हाथ पकड़ते हुए तल्ख़ स्वर में अपने शरीर के निशान दिखाते हुए कहा, ये जो उपहार तुम रोज मुझे देते हो ना रात को नोचने के बाद बस बहुत हुआ अब और नहीं ।


निशा"अतुल्य


 


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