फैसला-पद्माक्षी शुक्ल

मीना ओर मोहन एक दूसरे को प्यार करते थे. दोनो के माता पिता ने मंजुरी दे दी. पंद्रह दिन के बाद शादी का मुहुर्त था.मगर मीना रसोई घर में  खाना बनाते  छोटी सी आग का शिकार बन गई। मुंह के नीचे का पुरा हिस्सा आग की लपेट में  आ गया.  मीना को अस्पताल ले के गये, हालत गंम्‍भीर थी। मोहन भी उनके पास था. डॉक्टर ने बताया, बचाने का एक रास्ता है, हाथ और पैर के मॉंस निकाल कर जो भाग जल गया है, वहॉं सर्जरी किया जाये इतना कहते हुए  डाक्‍टर रूक गया। मोहन ने पूछा आप रूँक क्‍यों गये? डाक्टर ने बताया, जान बचेगी मगर पूर्ण शरीर खूबसूरत नहीं  रहेगा. ओर खर्च भी ज्यादा होगा।

        मोहन ने तुरंत फैसला लिया और डाक्‍टर से कहा, " खर्चे के बारे में  मत सोचो, में  लोन ले लूंगा, मीना के पिता गरीब है, पर मैं बैंक में  काम करता हूँ। मीना के मन, ह्रदय से में ने प्यार किया है, खूबसूरती, के बारे में  मत सोचो, बस मुझे मीना चाहिये, उसे बचालो, आज का ही शादी का मुहुर्त था, आज में, उनके साथ शादी के बंधन में  बंध चूका हुं।

          डाक्टर सहित वहां खडे थे सभी की आंखे भर आई. ओर दोनो के माता, पिता, पुत्र ओर जमाई के फेंसले से अपने आप को गौरवान्वित महसूस करने लगे.ओर मीना की आंखोसे अस्खलित अश्रु प्रवाह बह रहा था.।

 

पद्माक्षी शुक्ल, पुणे


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