पिता का दर्द-रेखा


ख्त पर बैठे बाबूजी को देखकर, अनमोल आगे बढ़ गया अभी वह थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि माँ ने पूछ लिया। 
बेटा, आज ऑफिस से आने में देर कैसे हो गई? 
मुझे कोई शौक है देर से आने का? कोई तो काम होगा जो इतनी देर हो गई.. अनमोल ने बेेेमन से कहा।
माँ हंस कर बोली - बेटा तूने सुबह से कुछ खाया नहीं था न,  इसलिए पूछा लिया। 
अब क्या, आपको एक-एक पल का हिसाब देना पड़ेगा?.. आपको क्या मालूम कि बाहर जाकर मुझे इस दुनिया से कितना जूझना पड़ता है? 
आपको तो बस बैठे-बैठे चिंता जताने की आदत है!.  यहाँ जीना हराम हुआ जा रहा है। 
माँ और बाबू जी एकदम चुप हो गए। एक-दूसरे से नजरें मिली और झुक गईं। 
पास बैठा उनका दस वर्षीय नाती, यह सब कुछ देख सुन रहा था। वह उठकर धीरे से पिता के पीछे-पीछे चल दिया। 
अनमोल ने अंदर जाकर अपनी पत्नी से कहा, "यह लोग सठिया गए हैं। कोई काम- धाम तो है नहीं। बस मेरी खैर-खबर लेते रहते हैं। कहाँ गया था?.क्यों गया था?. हर समय रोक-टोक अभी भी माया-जाल में फंसे हैं। यह नहीं कुछ पूजा- पाठ करें। धर्म की किताबें पढ़ें। पता नहीं किस उधेड़-बुन में लगे रहते हैं?" 
माही ने सुनकर चुपचाप उसकी ओर देखते हुए कहा - आप भी कहाँ पचड़े में पड़ गए? थके हारे आये हो,  शांति से चाय-नाश्ता करके कुछ देर आराम करो। 
तभी अनुमोल की नजर सुव्रत , अपने बेटे पर पड़ी वह मुस्कुरा उठा। अरे बेटा तुम इधर आओ। तुमको देख कर मेरे कलेजे को ठंडक मिल जाती है। उसने सुव्रत को अपने कलेजे से चिपटाना चाहा। 
सुव्रत अनुमोल का तेजी से हाथ झटकते हुए बोला, "छि दूर रहो मुझसे, पसीने की कितनी गंदी गंध आ रही है, आप में से। अब क्या आपके ही पास बैठा रहूँ? अपने दोस्तों के साथ खेलने नहीं जाऊं। जब देखो तब मेरे पीछे पड़े रहते हैं। दोस्तों के साथ चैन से खेलने भी नहीं देते, कहता हुआ चला गया।"
 "हताश अनुमोल पिता का दर्द लिए निराशा में डूब गया।" 



- रेखा दुबे 
- विदिशा, मध्यप्रदेश


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