पितृपक्ष में तर्पण का महत्व -अलका

 


पितृ पक्ष का समय पूरी तरह से पितरों को समर्पित है. श्राद्ध में पितरों का तर्पण करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और पितरों का आशीर्वाद भी मिलता पितृ पक्ष में तर्पण का बड़ा महत्व महत्व है।पितरों की आत्मा की शांति के लिए शास्त्रों में श्राद्ध का बहुत महत्व माना गया है. ... श्राद्ध के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है  ! 
पितृ पक्ष शुरू हो चुका है. हिंदू धर्म में पितृपक्ष का खास महत्व होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी की तिथि से पितृ पक्ष शुरु हो गए हैं.पूर्णिमा को टपूर्णिमा श्राद्ध भी कहा जाता है. पितृ पक्ष पितरों का तर्पण करने से पुण्य प्राप्त होता है, ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष भी बताया गया है. पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के जरिए पितरों को आभार प्रकट किया जाता है. ऐसा करने से आपके पितृ प्रसन्न होते हैं और अपना आर्शवाद प्रदान करते हैं. 
श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही किया जाता है, मान्यता है कि पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी की तिथि को करना अच्छा माना जाता है !अगर किसी की अकाल मृत्यु हो जाती है तो ऐसे में श्राद्ध चतुर्दशी के दिन श्राद्ध किया जाना चाहिए 
!वहीं साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है! 
पितृ पक्ष में पिंडदान का भी बेहद महत्व होता है इसमें लोग चावल,गाय का दूध,घी,गुडऔर शहद मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित करते हैं !इसके साथ ही काला तिल,जौ,कुशा,सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है!श्राद्ध करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है, इसके साथ ही दान देने की भी परंपरा है ! श्राद्ध करने से दोष समाप्त होते हैं, यहि आपकी कुंडली में पितृदोश है तो यह दोष समाप्त होता है ! जिससे रोग,धन संकट,कार्य में समस्याएं दूर होती हैं ! श्राद्ध करने से परिवार में आपसी कलह और मनमुटाव का नाश होता है ! घर के बड़े सदस्यों का सम्मान बढ़ता है !इस दौरान किसी को अपशब्द भी नही कहने चाहिए !सात्विक जीवन जीना चाहिए , भक्ति पूर्वक पूजा पाठ करना चाहिए !
भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।
जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है। हमारे हिंदू धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है; उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है। 
जो बहुत प्रेम भाव से तर्पण करते है उनके पितर उन्हें सभी संकटों से बचाते रहते हैं और आशिष देते है ! 


डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई



 


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