सांसों के उतरते-चढ़ते ढलान पर रुक जाती है तुम्हारी याद,
ओस के बिखरे कणों में डूब कर मुस्कुराती है तुम्हारी याद,
कभी रंगीनियों में गुम होकर दिल के तहखाने में चली जाती
कभी लरजते ओठों पर हया कि लाली बन शर्माती है तुम्हारी याद,
बिखरी हुई इबारत के मायने ही बदल जाते है सनम
जब शब्दो को कविता की रवानी बना तड़पाती है तुम्हारी याद,
मेघों की बाहों में समा कर हवाएं जब भी गीत लिखती है
सिंदूरी आभा से रक्तिम आसमान मेरे गालों पर फैलाती है तुम्हारी याद।
समुंदर की लहरों में उतरकर चाँद मदहोश हो जाता है जब
ज्वार का आँचल थाम समुंदर में भाटे सी उतरती है तुम्हारी याद,
रेखा दुबे
विदिशा, मध्यप्रदेश
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