सोशल मिडिया व रोजगार-खुशबु


यूँ तो सोशल मिडिया देश दुनिया की तमाम खबरो को अलग -अलग टी वी चैनलो पर प्रचार प्रसार करती है क्या हकीकत है किसी को नहीं पता । हमारे देश भारत में सवा सौ कडो़र देशवासी है ।प्रति दिन की किसी ईक शहर की घटनाऐं लगभग लाखो कि संख्या में होती हैं लेकिन टी वी पर दिखाई जाने वाली वही ५ मिनट में फटाफट सौ खबरें । जिनमें सरकार, कडो़ड़ पति, कुछ खेल समाचार ,दो-चार चोरी ,लूट तथा हत्या , बाकी खबरें फिलमी दुनिया ऐवं सितारों की होती है जिसमें ऐ खबर होती हैं कि आज शिलपा ने बनाया बैगन का भरता जो कि गमले ऊगाऐ गऐ थे ।बाकी के मध्यम वर्गीय परिवार ऐवं गरीब परिवार किस तरह अपना जीवन व्यतित कर रहे है। ईस क्राईम से भरी दुनिया को कैसै झेल रहे है किसी को नहीं मालूम ।
केवल ऊन लोगों की खबरें ही क्यों आती हैं जिनके पास पैसा हैं। उनकी खबरे क्यों नही आती जो बेघर हैं गरीब है क्या किसी ने ऐ कभी सोंचा हैं नहीं।क्यों कि यहाँ हर शख्स पैसै का भूखा हैं सब लोग पैसै कमाने मे व्यस्त हैं । किसी गरीब या बेसहारा के साथ क्या हुआ क्यों हुआ किसी को कोई मतलब नहीं ।


रोजगार 
रोजगार क्या है असल माईने इसके किसी को नहीं पता।पुराने समय का रोजगार तो हमने कुछ ऐसे सुना कि दुध वाले का दुध का रोजगार है परंतु आज-कल के रोजगार का तो रंग- रुप ऐवं निती ही अलग है । पानी माँगो तो मदिरा मिलता है और दूध माँगो तो विश ,यहा तक कि चोरी तथा लूट भी नये ऐवं मोर्डन तरिके का रोजगार हो गया हैं ।
संस्थाऐ ऐवं कानून तो कई हैं मगर शांति जिवन का समाधान नहीं देवता जैसा डाक्टर भी मृतक को बेड पर लिटा मृतक शरीर में आक्सीज़न नलीका लगा हास्पिटल का चार्ज बढा़ने लगा हुआ हे । क्या यही है वास्तविक रोजगार ?


 


खुशबु
नईदिल्‍ली



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ