मेरा प्यारा बचपन बीता मेरे अपने गाँव में।
नीम, पीपल और बरगद की ठंडी छाँव में।
खेतों में फैली होती हरियाली चहुँ ओर।
होती रिमझिम वर्षाऔर घटा घिरती घनघोर।
दादुर कूदें,कोयल गाती और नाचते मोर।
संग मोर के मैं नाचती पहने पायल पाँव में।
मेरा प्यारा बचपन बीता मेरे अपने गाँव में।
बाग बगीचे, गुड्डे,गुड़िया,खेल खिलौने
आते याद अब बचपन के दिन वो सुहाने।
गर्मी लगती तो नहर में जाते खूब नहाने।
खो खो के खेल में चुभते पत्थर मेरे पाँव में।
मेरा प्यारा बचपन बीता मेरे अपने गाँव में।
बचपन की सब मीठी वो प्यारी सी यादें।
दादी नानी के किस्से और परियों की बातें।
मम्मी की मीठी लोरी सुन कर सोने की रातें।
छत पर जाकर सब सोते थे चंदा की छाँव में।
मेरा प्यारा बचपन बीता मेरे अपने गाँव में।
होता है बचपन तो सब निधियों से न्यारा।
लगता है मुझको तो बचपन बहुत ही प्यारा।
उलझ गया है अब जंजालों में जीवन सारा।
मन करता है जीऊँ मैं बचपन की छाँव में।
मेरा प्यारा बचपन बीता मेरे अपने गाँव में।
सुधा बसोर
वैशाली (गाजियाबाद)
मोबाइल नं--9958132613
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