हास्य, खुश में रहना ही तो राज है स्वास्थ का, क्यों कि परमतत्व जो भीतर है, उसका स्वरुप आनंद है। बालक इन तत्व से ज्यादा प्रभावित है, इस लिये किसी भी बच्चे को देखकर हम प्रसन्नता का अनुभव करते है। बडे होने के बाद पाखंड का प्रभाव मन पर ज्यादा रहता है। हालात देख कोई भी शत्रु, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्षा, ये जागृत होकर मनको परेशान होता है. हम दु:खी हो जाते है, हमारे पाचनतंत्र पर गहरा असर होता है। इस वजह से मधुमेह, उच्च रक्त चाप, लकवा जैसे रोग के शिकार बनते हैं। हसते रहना ही जीवन का आधार है। जड़ीबूटी है। हास्य से मुह की रेखा को, स्मार्ट दिखा सकते है, जनता को हम प्रभावित कर सकते है, प्यार पा सकते है। दु:ख को, गम को भूला के खुश कर सकते है। हस कर हम झगड़ा के माहौल को दूर कर सकते हैं । हंसते रहो, हंसाते रहो, स्वस्थ रहो, मस्त रहो,
पद्माक्षी शुक्ल, पुणे,
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